जिंदगी से भला क्या गिला कीजिए
सबकी’ किस्मत है ,यूंही जिया कीजिए।
देखता तो खुदा भी यूं हमको यहाँ
देखिये मत किसी से दगा़ कीजिए।
जिनसे दिल की लगी ,दिल्लगी हम करें
उनकी महफिल में इज्ज़त बढा़ दीजिए।
जख़्म देकर हमें याद आते हैं जो
आप उनको ही दिल से मिटा दीजिए।
हर शह्र क्यों परेशान है.. देख लो,
मुल्क है ..कौन मेरा बता दीजिए।
खैर मखदम तो’ वो भी करेंगे मेरी
अपनी औकात उनको जता दीजिए।
हर तरफ़ इस क़दर यूंही माहौल हो
बदजु़बानी ज़रा सा घटा दीजिए।
जिस्त की शाम होने लगे जब तेरी
रूह से इश़्क… सारा लुटा दीजिए।
— सीमा शर्मा सरोज