ग़ज़ल
परचम हमारे देश का ऐसा लहर गया |
भारत हमारा विश्व के दिल में उतर गया |
सीने पे खा जो गोलियाँ जय बोलते रहे-
उनके लहू से देश का चेहरा निखर गया |
जाँबाज सरफरोश निडर देश के वो लाल-
करतब को जिनके देख के दुश्मन सिहर गया |
फांसी का फंदा चूम के जो चढ़ गये सलीब –
तप त्याग बल से उनकी भारत सँवर गया |
कह के गए जाने वतन होना न तू उदास-
मैं जर्रा हूँ पवन ,सुगन्ध बन बिखर गया |
गणतंत्र अमर है अमर है इसकी आन बान-
ज्यों सप्त रंग इंद्रधनुष बन ठहर गया |
मन ‘मृदुल’ कह रहा है मिटेंगे सभी विषाद-
अब ज्ञान की मशाल ले जन- मन फहर गया |
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’