पन्ना धाय के पुत्र बलिदान की कविता.
मेवाड़ के भावी शासक सहायक
पन्ना पुत्र का बलिदान किया।
पन्नाधाय ने अपनी ममता, स्नेह,
रियात को कुर्वान किया।
देहांत हुआ जब राणा सांगा का
पुत्र उदय सिंह बनवीर कर सौंप दिया
पालन पालन का अधिकार से
बनवीर को क्षण जोंर दिया।
नहीं पता था मन में कालुष
बनवीर के एक दिन आएगा
लोभ के लालच में आकर
मरवाना राणा हक ले चाहेगा।
समझ गई थी पन्नाधाय
उदय की धाय माँ कहलाती थी।
कुंवर का लालन पालन पोषण
सौभाग्य समझकर करती थी।
देशभक्त, स्वाभिमानी सी महिला
मालिक वो राणा को माने थी।
धाय माँ का फर्ज़ निभाती
व्यस्त लालन-पालन रहती थी।
पता चला जब बनवीर के
गंदे नापाक इरादों का उसको।
उदय के बिस्तर पर उसने
लिटा दिया पुत्र को अपने।
प्रवेश किया बनवीर जो कक्ष में
नंगी तलवार से वार किया।
एक ही क्षण में सोच के उदय है
पन्ना के अंश को निर्ममता मार दिया।
समझा उसने मार दिया
मेवाड़ के भावी से वो राजा को।
पता नहीं था बचा लिया था
पन्ना ने मेवाड़ के युवराज को।
किया बलिदान स्वयं का पुत्र
मेवाड़ का भावी राजा बचा लिया।
जूठे पत्तल भरी टोकरी में
महल तक उदय सुरक्षित पहुँचा दिया।
नारी शक्ति के त्याग और बलिदान का
पन्नाधाय थी ज्वलंत प्रमाण सा।
उदय सिंह की खातिर उसने
स्वयं पुत्र का जान दिया।
तू पुण्यमयी तू धर्ममयी त्याग देवी
धरती के हीरे पन्ना सा दान दिया।
लिखित –रेखा मोहन २०/१/२०२०