बसन्त पंचमी-दोहा मुक्तक
भौरों का गुंजन मधुर, कोकिल गाती गीत
पुष्प सजीले खिल उठे, चली सदन को शीत।
स्वागत करते हैं सभी, आये हैं ऋतुराज।
मन व्याकुल प्रियतम बिना, कब आओगे मीत।
वीणा पुस्तक धारिणी, भरो हृदय संगीत
ज्ञानदायिनी आपगा, करूँ ज्ञान से प्रीत।
श्वेत वस्त्र शुभ धारिणी, दे दो माँ आशीष
ज्ञान दीप उर में जले, जीवन रहे अभीत।
— गीता गुप्ता ‘मन’