कविता

बसंतबहार

फिजायें बहक रही हैं
स्पर्श इसकी सुहानी है।
नैनों में हलचल मची है।
पत्तियों ने ली अँगड़ाई ।

कण कण में उष्मा जगे
ऋतुराज का करने अगुआई।
सोयी तृष्णा भी जगे
बसंत ऋतु में बहार छाई।

उजड़े चमन चंचल हुए
वीणा के तार झंकृत हुए
जीवन की संध्याबेला में
माँ शारदे का स्पर्श सुखदायी।

हर पल अहसास दिलाती हैं
बंद कपाट खुल जाते हैं।
सोयी लेखनी थिरक उठी
अरमानों को पंख मिले हैं ।

कभी खुशी कभी गम
पल पल भाव जगाती है
जीवन इक मीठी प्यास है।
रंजोगम में भी जीने की आस है।

— आरती राय

*आरती राय

शैक्षणिक योग्यता--गृहणी जन्मतिथि - 11दिसंबर लेखन की विधाएँ - लघुकथा, कहानियाँ ,कवितायें प्रकाशित पुस्तकें - लघुत्तम महत्तम...लघुकथा संकलन . प्रकाशित दर्पण कथा संग्रह पुरस्कार/सम्मान - आकाशवाणी दरभंगा से कहानी का प्रसारण डाक का सम्पूर्ण पता - आरती राय कृष्णा पूरी .बरहेता रोड . लहेरियासराय जेल के पास जिला ...दरभंगा बिहार . Mo-9430350863 . ईमेल - arti.roy1112@gmail.com