कहानी- कंजूसी का परिणाम
अलीपुर गांव में बिस्सू नामक एक किसान रहता था। उसके पास बारह सौ बीघा जमीन थी। जिस पर खेती करके वह अपने परिवार का जीवन यापन करता था। उसके परिवार में उसकी पत्नी तीन बच्चे और बूढ़ी माँ थी।
खेती से आमदनी अच्छी हो जाती थी। वह समय समय पर अलग-अलग फसलें उगाता था। कभी सब्जियां कभी सरसों तो कभी बरसात अधिक होने पर धान की खेती भी कर लेता था। मौसम अनुसार तीनों फसलों का लाभ उठाता था। धन की कोई कमी नहीं थी पर बिस्सू बहुत कंजूस था। हमेशा पैसे बचाने के चक्कर में लगा रहता था। उसने अपने तीनों बच्चों को शहर के स्कूल में पढ़ने भी इसलिए नहीं भेजा कि उनकी पढ़ाई में पैसा खर्च होगा। खेती तो वह मेरी तरह अनपढ़ रहकर भी कर सकते हैं। बच्चों ने गांव के स्कूल से पांचवीं तक की
पढ़ाई पूरी कर ली थी।
बिस्सू अपने परिवार को मोटा अनाज खिलाता था। अच्छा अनाज पैसों की लालच में शहर में जाकर बेच आता था। इतना पैसे होने के बावजूद भी वह अपने परिवार को बड़ी कंजूसी से चलता था और सारे रुपए जमा करता जाता था। जब उसके पास बहुत सारे रुपए हो गए तो उसे चोरों का डर सताने लगा। वह बहुत डरा-डरा तथा तनावग्रस्त रहने लगा। गांव में अक्सर डकैती होती रहती थी। वह डकैतों के डर से रात भर सोता नहीं था। भाला लेकर रात भर अपने घर की रखवाली करता रहता था। रात- रात भर जागने से वह बीमार रहने लगा। अब खेती में भी उसका मन नहीं लगता था। बिस्सू को समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने पैसों को कहां पर सुरक्षित रखे। एक दिन अचानक उसके दिमाग में एक विचार आया। क्यों न मैं अपने रुपयों को जमीन के अंदर छिपा दूँ। उसने अपनी माँ से सुना था कि पुराने समय में लोग मटके में पैसे डालकर जमीन में छुपा देते थे। फिर क्या था वह इस जुगत में लग गया। उसने तिजोरी से अपने सब रुपए निकाले और एक मिट्टी के घड़े में डाल दिए। रुपए इतने अधिक थे कि उसने गिना भी नहीं, जिससे उसे कोई देख न ले। मटके को माँ की एक पुरानी साड़ी से अच्छी तरह बांध दिया।
बिस्सू ने अपने खेत के एक सूने से स्थान पर एक बड़ा सा गड्ढा खोद कर ऊपर से एक बड़े से पत्थर से ढक दिया।
एक दिन आधी रात के समय वह उस मटके को लेकर अपने खेत की तरफ चल दिया। वह धीरे-धीरे बिना आवाज किए वहाँ पहुँचा और इधर-उधर देखने के बाद धीरे से पत्थर हटा कर रुपयों वाला मटका उसके अंदर रख दिया। ऊपर से ढेर सारी से मिट्टी डालकर फिर पत्थर रखकर चुपचाप अपने घर की तरफ चल दिया। कुछ मिनटों में ही वह अपने घर पहुंच चुका था। आज बिस्सू बहुत हल्का महसूस कर रहा था। जब वह बिस्तर पर लेटा तो क्षण भर में ही उसे नींद आ गई। वह बहुत खुश था। अब उसे डकैतों का डर नहीं था। वह पुन: अपने खेती के काम को मन लगाकर करने लगा। अब उसका स्वस्थ्य भी अच्छा रहने लगा।
सब कुछ अच्छा चल रहा था कि अचानक प्राकृतिक आपदा हुई सूखा पड़ गया। एक बूंद पानी धरती पर न आया। सभी किसानों की खेती सूख गई। अनाज का एक दाना न आया। किसानों के परिवार भूख से मरने लगे। बिस्सू के घर का भी यही हाल था। बूढ़ी माँ की मृत्यु हो चुकी थी।
अब उसे अपने मटके में दबे रुपयों की याद आयी। वह तुरंत खेत की तरफ गया पत्थर हटाया। फिर चारों तरफ की मिट्टी हटा कर मटके को ढूंढा पर मटका तो कहीं
दिखाई नहीं दे रहा था, सिर्फ चारों तरफ मिट्टी ही मिट्टी दिखाई दे रही थी। रुपयों का कहीं अता-पता नहीं था। बहुत देर तक चारों तरफ की मिट्टी खोदकर वह मटके को खोजता रहा पर नाकामयाबी ही हाथ लगी। वह भूखा प्यासा वहीं माता पकड़कर बैठ गया। एक बार फिर उसने मिट्टी में हाथ डाला तो उसने देखा कि उसका मिट्टी का मटका और रुपए सभी मिट्टी बन चुके थे। वह बहुत रोया चिल्लाया पर वहां उसकी कोई सुनने वाला नहीं था। दुखी मन से जब वह घर आया तो देखा। पत्नी और बच्चे भूख के कारण बीमार पड़े थे। बिस्सू ने रोते-रोते अपने पूरे परिवार को यह बात बताई और क्षमा मांगी। कुछ समय बाद इंद्र देव प्रसन्न हुए। खेती फिर लहलहा उठी। अब बिस्सू बदल चुका था। उसके घर में खुशहाली छा गई थी।
बड़े बेटे ने कहा- पिताजी आज से हम अपने बचे हुए अनाज को जमा नहीं करेंगे बल्कि जरूरत मंदों को बांटा करेंगे। बेटे के विचारों को सुनकर बिस्सू बहुत खुश हुआ। सच ही कहा गया है
अन्न दान महादान है।
— निशा नंदिनी भारतीय