मैं समय हूँ
अंगुली में लपेटे धागों से
नचा रहा मैं हर प्राणी को
महलों में स्वप्न दिखाता
कभी झोंपड़ी में तड़पता
राजा हो या फिर रंक
मारता मैं सबको ही डंक
कभी मोम सा पिघला देता
चट्टान सा कभी मैं अड़ता
करते सभी मेरा गुणगान
हूँ मैं बहुत ही बलवान।
उज्ज्वल उजाला भी मुझ से
काली अंधेरी रात भी मुझ से
सूर्य चंद्र नक्षत्र ये तारे
मेरी गति से बंधे ये सारे
स्वयं रहकर अनुशासन में
नियमों की देता सबको सीख
व्यर्थ जो करता मुझे
मांगता सदैव ही भीख
वायु सम वेग है मेरा
भूत-वर्तमान-भविष्य है डेरा।
यह अद्भुत अनंत यंत्र
देता सबको अनमोल मंत्र
गीता का उपदेश यह समझो
कर्म फल मिलता है सबको
डरो मत किसी से तुम
कर्मों की ज्योति चमकाओ
लक्ष्य साधना चाहते हो तो
मेहनत से मत घबराओ
लगा कर दौड़ वक्त के साथ
वक्त से फिर हाथ मिलाओ।
— निशा नंदिनी भारतीय