तुम्हारे शब्दों की सीढ़ी चढ़ते चढ़ते उसे मिला
जल का एक मीठा दरिया
सुकून वाला हरा-भरा जंगल
चिकने पत्तों वाले फलदार वृक्ष
और वृक्षों पर बैठा पक्षियों का समूह
शब्द सीढ़ी चढ़ते गए
आत्मा में उतरते गए।
तुम्हारे शब्दों की सीढ़ी चढ़ते चढ़ते उसे मिली
ग्रीष्म में शीतल बयार
कोमल कमल पर पड़े तुहिन बिंदु
हवा के नरम झोंके की पतवार का
सहारा लेकर
वो शब्दों की नौका बना
हृदय के पार उतर गया।
तुम्हारे शब्दों की सीढ़ी चढ़ते चढ़ते उसे मिला
अरुण का अलसाया रूप
शरद की गुनगुनी धूप
गर्म चाय की चुस्कियों के साथ
पुराने लिहाफ की गर्माहट
सफेद चमकीली घूप का स्पर्श जिसे पाकर वो आकाश के पार चला गया।
तुम्हारे शब्दों की सीढ़ी चढ़ते चढ़ते उसे मिली
चाँद की श्वेत चाँदनी में लिपटी शीतलता
तारों से टंकी पुष्पित पल्लवित चादर
आकाश गंगा में आकंठ स्नान कर वो नक्षत्रों के पार चला गया।
तुम्हारे शब्दों की सीढ़ी चढ़ते चढ़ते उसे मिला
हृदय की आत्मीयता भरा घर का कोना
झरोखों के बाहर का सुंदर दृश्य
दो कपाटों के बीच का मधुर मिलन
सब उसकी आत्मा में घुलते चले गए और वह स्वर्ग के पार चला गया।
— निशा नंदिनी