धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

550वें प्रकाश पर्व के प्रकाशाई: रविंदर भाई

इस बार अपना ब्लॉग पर रविंदर सूदन के सौजन्य से गुरु नानक जी का प्रकाश पर्व 550वां प्रकाश पर्व मनाया गया, जो लगातार 45 दिनों तक चलता रहा. सचमुच यह वह प्रकाश पर्व था, जिसने दिलों को प्रकाश पर्व बना दिया. प्रकाश पर्व के समापन पर गुरु नानक जी का प्रकाश पर्व (अंतिम) भाग- 45 में रवि भाई ने लिखा था-

”आदरणीय दीदी, मुझ पर तो ब्लॉग का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है. गुरु जी के आय का दसवां भाग गरीबों को देना, जरूरतमंदों की मदद, इत्यादि के उपदेशों को प्रयोगों में लाने के लिये रास्ते भी दिखाई पड़ रहे हैं. विदेश में तो बीमारी के दौरान गाजर का जूस पीता था, कई महीने तक, जूस निकालने के बाद बचा गूदा फेंकना पड़ता था, अफसोस होता था, किसी पशु तक को खिला नहीं सकते. यहाँ कितने लोगों को छोटी-छोटी जरूरत के लिये, तरसते देखकर, ठंड में नंगे पैर घूमते बच्चे, देखकर करने को बहुत कुछ है. दस हजार में खरीदे लोगों से लोग बीस-बीस साल से काम करवा रहे हैं, वीडियो देखा, खाने को दो रोटी फेंक देते हैं. लुधियाना की एक संस्था, ऐसे लोगों को छुड़वा कर उनकी सेवा करती है.”
-रविंदर सूदन
रवि भाई, शिद्दत से चाहत हो एक, तो रास्ते निकल आते हैं अनेक!

”आदरणीय दीदी, आजकल मैं टीवी पर पीटीसी सिमरन देखता हूँ. देश के गुरुद्वारों के दर्शन के साथ साथ वहां का इतिहास भी बताया जाता है. जानकर आश्चर्य होता है, गुरु जी ने इतनी अधिक यात्राएं देश विदेश में की.”
-रविंदर सूदन

ये विचार है भाई रविंदर सूदन के, जिनकी दिनचर्या ही बदल गई एक श्रंखला ”गुरु नानक जी का प्रकाश पर्व” लिखने से. भाई रविंदर सूदन की ही क्यों, बहुत-से पाठकों की दिनचर्या भी बदल गई. जब तक वे ”गुरु नानक जी का प्रकाश पर्व” की नई कड़ी नहीं पढ़ लेते थे, उनको चैन ही नहीं पड़ता था, जिस शिद्दत से रवि भाई एक-एक कड़ी लिखते थे, इसे सभी पाठक-कामेंटेटर्स पढ़ते भी बहुत शिद्दत से थे.

रविंदर भाई को ‘पता ही न चला’ कि कब उन्होंने ब्लॉग लिखना शुरु किया और कब उनके 100 ब्लॉग हो गए, लेकिन गुरु नानक जी के 550वें जन्मदिवस पर्व पर उनको ब्लॉग लिखना है, यह पता भी था और दृढ़ निश्चय भी था. इसका विशेष भाग 1 आया November 15, 2019 को और लगातार 45 दिन चलकर January 22, 2020 को इसका समापन हुआ.

इस श्रंखला के 45 भाग आए और हर भाग में गुरु नानक जी के जीवन के अनेक प्रेरक प्रसंग पढ़ने को मिले. पाठक-कामेंटेटर्स भी कामेंट्स में गुरुजी के प्रेरक प्रसंग लिखते थे.

उन दिनों गौरव द्विवेदी बहुत व्यस्त चल रहे थे, फिर भी समय निकालकर उन्होंने भाग- 1 में लिखा-
”आदरणीय दादा सादर प्रणाम, जब से मैंने आपके ब्लॉग पढ़ना शुरू किए हैं तब से मैं आपकी लेखनी और विचारों की अभिव्यक्ति का मुरीद रहा हूँ। आपका हर ब्लॉग शिक्षाप्रद और जानकारियों का भंडार होता है। गुरुनानक देव जी पर लिखा आपका यह ब्लॉग भी अद्भुत, ज्ञानवर्धक और मानवीय संवेदनाओं को जागृत करने वाला है। एक सुंदर, सटीक और अद्भुत ब्लॉग के लिए आपको अनेक शुभकामनाएं🙏🙏”

भाग- 2 में हमने लिखा-
”प्रिय ब्लॉगर रविंदर भाई जी, गोरखनाथ जी ने अपने शिष्यों को गुरु जी के पास उनकी परीक्षा लेने के लिए भेजा, लेकिन उनकी ही परीक्षा हो गई और सब एक-एक कर मात खाते गए. यह जंग तीर-तलवारों की नहीं थी, शब्दों की थी और शब्द भी सुरीले-सजीले-सकारात्मक-सीख देने वाले. एक और बहुत सुंदर ब्लॉग के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद और बधाई.”
कितना अद्भुत प्रसंग होगा!

भाग- 3 के लिए इंग्लैंड से गुरमैल भाई का इस ब्लॉग पर मेल से संदेश भेजा-
”बहुत अच्छा वृतान्त रविंदर भाई. वैसे किस ग्रन्थ में है यह कथा. बचपन का पढ़ा तो अब याद नहीं. गुरमेल भमरा.”

यह श्रंखला नवीन जानकारी, ज्ञान, आनंद और दर्शन के सागर में गोते लगवाने वाली रही-
”प्रिय ब्लॉगर रविंदर भाई जी, नवीन जानकारी, ज्ञान, आनंद और दर्शन के सागर में गोते लगवाने के लिए आपका यह प्रयास अत्यंत सराहनीय है. हमने बहुत कीर्तन दरबार में शिरकत की है, पर ध्रुव के पास फिर विष्णु धाम में गुरु जी के जाने की कथा के बारे में बिलकुल अनजान थे, आज हमारा ज्ञान समृद्ध हुआ. इस श्रंखला के एक और बहुत सुंदर ब्लॉग के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद और बधाई.”

अत्यंत व्यस्त रहने के कारण अब तक सुदर्शन खन्ना इस श्रंखला के दर्शन नहीं कर पाए थे. भाग- 7 में उन्होंने अपने विशेष शैली में लिखा-
”आदरणीय रविन्दर जी, सादर प्रणाम. जब आप ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन करते हैं तो मानो इतिहास के पन्ने खुल-खुलकर हमारे सामने आते हैं, घटनाएं जीवंत हो उठती हैं, पढ़ने की ललक जाग उठती है, युवा पीढ़ी तो लाभान्वित होती है, मुझ जैसे को भी अनेक नयी-नयी बातें मालूम होती हैं. यह खूबी आपमें है जो बरबस मन मोह लेती है. आपकी कलम की स्याही कभी न सूखे ऐसी इच्छा करता हूँ. पुनः सादर नमन.”

कुसुम सुराणा भी भा1 से इस श्रंखला के साथ जुड़ी रहीं. भाग-11 में लिखती हैं-
”रविंदर जी! सुंदर प्रस्तुति! खास कर ये उपदेश, शब्द!”जहां परमात्मा का प्रेम पैदा हो उसे उजाड़ कहना पागलपन है, तथा जहां परमेश्वर का नाम भूल जाए उस स्थान को उजाड़ जानो” बहुत कुछ सीखना, समझना बाकी है! नमन आपके प्रयासों को!”
रविंदर भाई सबको बहुत कुछ सिखाते चले गए. बीच में ‘सिख इतिहास में दिसंबर का महीना’ ब्लॉग भी बहुत कुछ सिखाने वाला रहा.

शोभा भारद्वाज भी जुड़ी रहीं-
”सुंदर कथाएँ कृपया इन्हें संकलित करिये.”

रविंदर भाई इस संकलन के साथ-साथ सत्संग का आनंद ले रहे थे-
”आदरणीय दीदी, सादर नमन. कोई पढ़े या ना पढ़े, मैं तो लिखकर ही सच्चे संत का सत्संग कर रहा हूँ. सत्संग में आप भी सम्मिलित हैं आपका बहुत बहुत धन्यवाद.” भाग- 15

समय मिलते ही सुदर्शन खन्ना का विशेष ज्ञान भी हमारा ज्ञान बढ़ाता रहा-
”आदरणीय रविन्दर जी, सादर प्रणाम. बहुत ही शानदार श्रृंखला जारी है. एक गुरुद्वारा पहली पादशाही लाहौर में है. यह ऐतिहासिक स्थल देल्ही दरवाजे के अंदर पुरानी कोतवाली चौक के पास चौहट्टा मुफ़्ती बाकर में सिरियों वाले बाजार के करीब है. लाहौर शहर के चारों ओर बने दरवाज़ों से किसी एक से होकर यहाँ पहुंचा जा सकता है. श्री गुरु नानक देव जी १५६७ विक्रमी, १५१० ई को भ्रमण करते हुए पहुंचे. वहां गुरुघर के मशहूर भाई दुनी चंद के यहाँ रुके. वह उस दिन अपने पिता का श्राद्ध कर रहा था. गुरुजी ने समझाया भूखे को भोजन कराना, वस्त्र देना और दरिद्र की सहायता करना असली परोपकार है. घर को गुरु चरणों का स्पर्श प्राप्त होने से उसे गुरु स्थान बना दिया गया जिसे धर्मशाला गुरु नानक देव जी अथवा गुरुद्वारा पादशाही कहा जाने लगा. ये कुछ अंश सरदार रूप सिंघ द्वारा लिखित पुस्तक में से लिए हैं.” भाग- 16.

जीवन प्रकाश कैसे पीछे रहते!
”आदरणीय रविन्द्र जी सादर नमन,बहुत ही प्रेरणादायक प्रसंगों से भरपूर श्रृंखला है, महापुरुषों के मार्ग का अनुसरण जीवन को राग-द्वेष से मुक्त कर देता है।” भाग- 17.

”प्रिय ब्लॉगर रविंदर भाई जी, कितनी अच्छी परिभाषा दी है गुरुजी ने गुरुमुख और विमुख की. जो परमेश्वर की इच्छा पर प्रसन्न रहें दुख सुख को एक जैसा जाने उसे ही गुरमुख कहा जाता है जो इसके उलट आचरण करें वही विमुख है. इसलिए हरि इच्छा हे कैवल्यं को अपना ध्येय बनाना चाहिए. गुरुजी सवयं भी इसी मंत्र का अनुसरन करते हैं. रवि भाई, हमें सत्संग का लाभ देने वाले आपको भी असीम आनंद की प्राप्ति होती होगी. बांटन वारे को लगे ज्यों मेंहदी को रंग! सत्संग से सराबोर श्रंखला के एक और बहुत सुंदर ब्लॉग के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद और बधाई.” भाग- 20

चंचल जैन भी सत्संग का आनंद ले रही थीं-
”रविंदर जी, आप को बहुत बहुत बधाई,आप का सौवाँ ब्लॉग ‘भाग- 26’ कल प्रकाशित हो रहा है.गुरु की करनी की ओर ध्यान देना शिष्य का कर्तव्य नहीं, शिष्य का कर्तव्य तो गुरु की आज्ञा मानना है।ज्ञान,दर्शन और चरित्र्यवान व्यक्ति जब गुरुचरणों समर्पण भावके साथ श्रद्धावनत होगा ,तब ही वह मोक्षमार्ग पर अग्रेसर हो पायेगा .गुरु नानक जी का प्रकाश पर्व भाग- 26 जीवन को आलोकित करते परम पावनप्रकाश पुंज से सब का जीवन आनंदित,उल्हसित हो यही मंगलकामना .अध्यात्मिक ज्ञान से रूबरु कराती आप की अनमोल रचनाओं के लिये बहुत बहुत धन्यवाद .” भाग- 25

26वीं कड़ी बहुत ख़ास रही. इसी के साथ रविंदर भाई की शतकीय पारी पूरी हो गई और लीला तिवानी का एक ब्लॉग आया-
”रविंदर भाई: शतकीय ब्लॉग की बधाई”.
इस ब्लॉग नें इस श्रंखला को पंख लगा दिए. यहीं से प्रकाश मौसम भाई भी श्रंखला से जुड़ गए. तभी नए साल की आहट आई और रविंदर भाई का ब्लॉग आया-
”नया साल मुबारक” . इस ब्लॉग के बारे में हम आपको कुछ नहीं बताएंगे. हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है.
भाग -30 में नन्हे नानक का एक-एक अक्षर से एक-एक श्लोक बनाना मनोहारी लगा.
भाग- 36 में नानक जी के विवाह का प्रसंग है.
”प्रिय ब्लॉगर रविंदर भाई जी, गुरु जी के ब्याह के मंगल गीत गाए गए, निर्विघ्न ब्याह सम्पन्न हुआ, आपको भी कोटिशः बधाइयां और शुभकामनाएं. आपने हमें इतने सुंदर मंगलकारज का आंखों देखा हाल सुनाया, आपके साथ हम भी धन्य हो गए. हमको भी कोटिशः बधाइयां और शुभकामनाएं. महान लोग लीक से हटकर चलते हैं, सात फेरों (परिक्रमा) के बदले चार फेरे लेने में भी कुछ राज छिपा होगा. संभवतः चार दिशाओं का भाव छिपा हो. अत्यंत मनभावन व जीवनोपयोगी सत्संग से सराबोर श्रंखला के एक और बहुत सुंदर कड़ी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद और बधाई.”
इस कड़ी में नानक जी के विवाह का वीडियो पोस्ट नहीं हो पाया था, वह भाग- 37 में आ गया-

प्रिय ब्लॉगर रविंदर भाई जी, गुरु जी के प्रेरक प्रसंग सुन-देखकर मन रोमांचित हो रहा है. कितनी सच्ची और अच्छी बात कही है!तउ देवाना जाणिये जा साहिब धरे पिआरु॥ मंदा जाणे आप कउ अवरू भला संसारु॥औरमत्था टेके जिमी पर, मन उड़े आसमान॥ घोड़े कंधार खरीद करे, दौलत खान पठान॥वास्तव में अक्सर ऐसा ही होता है. सच्चा ध्यान तो किसी-किसी गुरमुख का ही लग पाता है.अत्यंत मनभावन व जीवनोपयोगी सत्संग से सराबोर श्रंखला के एक और बहुत सुंदर कड़ी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद और बधाई.

नानक जी का रटन और उपदेश निरंतर चलता रहा. वे सबको उत्तम जीवन जीने के सूत्र सिखाते रहे. प्रकाश पर्व निरंतर आगे बढ़ता गया. भाग- 39 में पठान तो गुरुजी का मुरीद हो गया और भागो गुरुजी का शिष्य बन गया, समस्त नगरी गुरु घर की सेवा करने लगी. भाग- 40 में मरदाना कहता है-
”नानक पीरों के पीर गुरुजनों के गुरु बादशाहों के बादशाह, पीरों के पीर, उनकी स्तुति ऐसे हैं जैसे सूर्य को दीपक दिखाना, नानक जी की तारीफ करने के लिए संसार के किसी भी व्यक्ति की रसना पर्याप्त नहीं है, कोई लेखक गुरुजी के बारे कुछ भी लिखने में असमर्थ है।”

रविंदर भाई प्रकाश पर्व को प्रकाशित करने का सतत प्रयास करते रहे और यह प्रयास सफल भी रहा. भाग- 40 तक पहुंचते-पहुंचते सभी लोग सत्संगमय हो गए थे. रविंदर भाई ने लिखा-
”आदरणीय दीदी, सादर नमन. ब्लॉग लिखते लिखते गुरु जी की अपार कृपा बरसी है. अकल्पनीय आनंद, जो किसी भी अन्य भौतिक वस्तु में नहीं पाया जा सकता, अब तो सुबह शाम टीवी पर भी कीर्तन ह़ी पसंद आता है, कीर्तन के साथ साथ नीचे अंग्रेज़ी में उसका मतलब लिखा होता है, गुरु जी धन्य हैं. कीर्तन सुनकर तो कई बार आँखों से आंसू तक बहने लग जाते हैं. आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिये बहुत बहुत धन्यवाद.”
यह 40वीं कड़ी सुपरहिट हो गई थी और काफी समय तक सुपरहिट रही. इस कड़ी के कामेंट्स में आप गुरुबाणी के अनेक शबद भी देख सकते हैं, जो हमारे लिए तो अमूल्य हैं ही, अत्यंत लोकप्रिय भी हैं.
भाग-41
इसके उपरांत नानक जी मर्दाना के साथ सेंतालीस दिन तक चलते रहे । एक दिन फिर मरदाना को भूख ने सताया । मर्दाना: महाराज! अब तो चलना भी कठिन हो गया है । गुरु जी : धैर्य रखो, आगे एक सुंदर नगर आने वाला है ।
जीवन में धैर्य आ जाए, तो समझिए सब कुछ आ गया. इस कड़ी में हमने सालस राय जौहरी और मत्स्य की कथा सुनी. भाग- 42 के कामेंट में रवि भाई ने वाहगुरु का अर्थ भी समझाया-
”आदरणीय दीदी, सादर नमन. वाह का अर्थ चमत्कारिक, + गु= अंधेरा रु= प्रकाश. “चमत्कारिक भगवान जो अज्ञानता के अंधेरे को दूर करते हैं और सत्य , ज्ञान और ज्ञान के प्रकाश को उजागर करते हैं। ” the word vāhegurū is traditionally explained as vāh “wondrous” + gu “darkness” + and rū “light”, together said to carry the meaning, “the wondrous lord who dispels the darkness of ignorance and bestows the light of truth, knowledge and enlightenment”

भाग- 43 का सार इस प्रकार रहा-
”प्रिय ब्लॉगर रविंदर भाई जी, बहुत सुंदर उपदेश-1.परमात्मा का स्मरण प्रकाश करने वाला है, भक्त जनों को वह परमात्मा एक क्षण भी नहीं भूलता। हे मन तू आठों पहर उसी का स्मरण कर। 2.जो किसी को अपना सहारा मानता है, अथवा जो अपने को किसी का सहारा देने वाला मानता है, दोनों ही कुछ नहीं जानते। 3.देही के भीतर मुष्ट देह है, वह गुप्त है तथा यह प्रत्यक्ष है। उसी मुष्ट के साथ मृत्यु के बाद यह व्यक्ति जाता है और प्रत्यक्ष देह यहां रहती है। वह देह इसको नजर नहीं आती, यह सभी लीला परमात्मा की रची हुई है। गुरुजी सबका उद्धार करते चलते हैं. यह उनकी महत्ती कृपा है.अत्यंत मनभावन व जीवनोपयोगी सत्संग से सराबोर श्रंखला के एक और बहुत सुंदर कड़ी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद और बधाई.”

भाग- 44
”प्रिय ब्लॉगर रविंदर भाई जी, बहुत सुंदर उपदेश-एक भंडारा नाम का जिन सभ किछ दीना ॥ भूख नंग सभ सभ छीन के आपणा कर लीना ॥ संतों की मौज-”गुरु जी ने कहा हे राजन अब हम लोग आगे जाएंगे” और फिर उन्नीस महीने वहां रहे.” वाह-वाह रे मौज फकीरां दी. भाई अपनी इच्छा नहीं होती, ईश्वर इच्छा ही सर्वोपरि होती है, जहां उसकी इच्छा है वहीँ निवास होगा. हरि इच्छा, हरि इच्छा, हरि इच्छा. कड़ी समापन भी हरि इच्छा और श्रंखला समापन भी हरि इच्छा. गुरुजी अपदेश देते, सबका उद्धार करते चलते हैं. यह उनकी महत्ती कृपा है.अत्यंत मनभावन व जीवनोपयोगी सत्संग से सराबोर श्रंखला के एक और बहुत सुंदर कड़ी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद और बधाई.”

यानी अब कथा-समापन वाली कड़ी आ गई है. रवि भाई ने बहुत पहले से ही हमें और खुद को कथा-समापन के लिए तैयार कर रखा था, फिर भी मन को तो उद्विग्न होना ही था, हुआ. उद्विग्न से अधिक संतोष और सुकून भी था, कि लगातार 45 दिनों तक हम सत्संगमय हो गए थे.

गुरु नानकदेवजी ने बनाया था ‘एकोंकार’ शब्द, हर समस्या का दिया इलाज-

उनका स्पष्ट मत था कि हम सभी ‘एक पिता एकस के हम बारिक’ हैं अर्थात ईश्वर सभी का अलग-अलग नहीं है बल्कि एक ही है जिसकी हम अंतानें हैं. उन्होंने ‘ओम’ शब्द के आगे ‘एक’ और बाद में ‘कार’ लगाकर ‘एकोंकार शब्द बनाया. इसका अर्थ है, ईश्वर एक है और वही सृष्टि का कर्ता है. हर एक जीव-जंतु में उसी ईश्वरीय शक्ति के कण विद्यमान हैं। इस जादुई शब्द से उन्होंने सभी जाति, धर्म, वर्ण, लिंग और श्रेणी के लोगों को ईश्वर के बंदे बताकर एक स्तर पर लाने की कोशिश की.

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”एक”
एक वृक्ष एक जंगल को शुरु कर सकता है,
एक मुस्कुराहट दोस्ती शुरु पर सकती है,
एक हाथ आत्मा को श्रेष्ठता के स्तर पर पहुंचा सकता है,
एक शब्द जीवन का लक्ष्य निर्धारित कर सकता है,
एक मोमबत्ती गहन अंधकार को दूर कर सकता है,
एक खिलखिलाहट जीवन को खुशहाल कर सकती है,
एक आशा की किरण आपका साहस बन सकती है,
एक छुअन भी आपके प्रेम का अहसास करा सकती है,
एक आपके जीवन को परिवर्तित कर सकता है,
वह “एक” आज ही बनिए.

इस प्रकार रवि भाई के सद्प्रयास से हमने अपना ब्लॉग पर गुरु नानक जी का 550वां प्रकाश पर्व मनाया. 26 जनवरी की परेड में भी आपने गुरु नानक जी के 550वां प्रकाश पर्व की भव्य झांकी देखी होगी. गुरु नानक जी का 550वें प्रकाश पर्व के प्रकाशाई रवि भाई, हम आपके बहुत-बहुत धन्यवादी हैं. मन को सुकून देने वाले ऐसे ब्लॉग कभी-कभी ही आ पाते हैं. हमारी शुभकामना है, कि सभी के मन प्रकाश पर्व बन जाएं.

रवि भाई, सबके मन को सत्संगमय और सुकून से सराबोर करने वाली आपकी इस शानदार-जानदार आध्यात्मिक श्रंखला के लिए आपको हार्दिक बधाइयां व शुभकामनाएं. आपकी लेखनी की यह अनुपम ज्ञान-गंगा इसी तरह प्रवाहित होती रहे, इसीके साथ आपको एक बार फिर गुरु नानक जी के 550वें प्रकाश पर्व की हार्दिक बधाइयां व शुभकामनाएं.
हम हैं
लीला तिवानी के साथ अपना ब्लॉग के सब साथी

इस ब्लॉग को भी पढ़ें-
रविंदर भाई: शतकीय ब्लॉग की बधाई

https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/ravinder-bhaee-shatakeey-blog-kee-badhaee/

रविंदर सूदन का ब्लॉग-
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/author/ravisudanyahoo-com/

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “550वें प्रकाश पर्व के प्रकाशाई: रविंदर भाई

  • लीला तिवानी

    रवि भाई, ब्लॉग ‘रविंदर भाई: शतकीय ब्लॉग की बधाई’ में हमने लिखा था-
    ”रविंदर भाई, एक जाने-पहचाने आध्यात्मिक व्यक्तित्व का नाम है, जो सभी के दोस्त हैं. उनसे मुलाकात होना भी एक अद्भुत संयोग है, जिसने हमारे आध्यात्मिकता के दीप को और भी प्रज्वलित कर दिया.”
    आध्यात्मिकता का आपका यह प्रयास नया नहीं है, आपके ब्लॉग का शीर्षक ही है ‘उसकी कहानी’. आध्यात्मिकता की यह ज्योति जलती रहे, और हम सबको प्रकाशित करती रहे, यही हमारी मनोकामना है.

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