बहुत हुआ श्रंगार आज तलवार लिखूँगा
खन खन करते तेगों की आवाज़ लिखूँगा
बहुत हुआ लैला-मज़नू को पढ़ते पढ़ते
आज भरी महफ़िल में वीरों का इतिहास पढ़ूँगा
आज निडर चमचमाती तलवारों का प्रकाश लिखूँगा
कृषकों के खेतों में देशी हल की
आवाज सुनूँगा
बहुत लिखा इश्क,मोहब्बत पर डरते डरते
आज नज़र से नज़र मिलाकरके
वीरों से इश्क करूँगा
— शिवम अन्तापुरिया