कैसे बताऊं मैं तुम्हें
कैसे बताऊं मैं तुम्हें
मेरी दृष्टी का दर्पण हो तुम
दिल में छुपे हर अनकहे
विचारों का वर्णन हो तुम
गीतों का मेरे शब्द तुम
संगीत का सुर ताल हो
मेंरे कांपते होठों की इस
आवाज का गुंजन हो तुम
तुम भोर की पहली किरण
कुंतल को सहलाते मेरे
जो श्रवण में घोल दे मिठास
प्रभात के वो वचन हो तुम
जाड़े की घूप हो गुनगुनी
बारिश की चपल फुहार हो
अलबेली पुरवा बयार हो
मेरे तो नील गगन हो तुम
तुम चांद ह्दयाकाश के
आंखों के हो तारे तुम्हीं
मेंरी आत्मा का प्रकाश हो
चलती हुई धड़कन हो तुम
आंखो में तुम सांसों में तुम
यादों में तुम बातों में तुम
होठों की तुम मुस्कान हो
मन में बसे वो मन हो तुम
मेरी आत्मा की हो साधना
परमात्मा की हो वंदना
मेरे हृदय तन मन अहं का
संपूर्ण समर्पण हो तुम
— पुष्पा अवस्थी “स्वाती”