लघुकथा

नामकरण

सुदर्शन जी को चाय देकर शोभा बाग में आ गई , पीछे पीछे सुदर्शन जी भी आ गये। शोभा बाग के हर पेड़-पौधों से बातें कर अपना दिल बहलाती थी। शोभा को अपने साँवलेपन एवं छोटी नाक से कोई शिकायत नहीं थी । लेकिन अपनी तकदीर से अक्सर शिकायत कर रो पड़ती थी ।
विवशताओं की बेड़ियों की जकड़न आज भी उसके पतिदेव महसूस करते थे। उनकी दर्द भरी आवाज अक्सर शोभा को विचलित कर देती थी ।
सुदर्शन जी सच में सुदर्शन व्यक्तित्व के स्वामी थे। पारिवारिक आर्थिक तंगी एवं जवान बड़ी बहन के हाथ पीले करने की पहली शर्त शोभा थी ।
हाँ मैं यानि शोभा ! मेरे कुरूप चेहरे से बचपन से आज तक किसी ने प्यार नहीं किया ,फिर लड़की पसंद कर ब्याह करने का तो सवाल ही नहीं था । ऐसे में सुदर्शन जी की गरीबी एवं हमारे पिता का धनवान होना बेमेल विवाह में मेल करा दिया।
लाखों में सुदर्शन बिके नहीं बल्कि राखी का मोल चुकाने के लिए खुद अनमोल बन गये ।
फूलों की देखभाल करते वक्त अक्सर शोभा की सोच सुदर्शन के इर्दगिर्द ही मँडराते रहती थी।
सुदर्शन जी लॉन में अखबार पढ़ते पढते अचानक पूछ बैठे ; “शोभा क्वीज खेलोगी ?”
“नहीं जी ; मुझे मेरे फूलों के संग खेलना ही आता है ? मैंनें बचपन से लेकर आज तक कभी कुछ खेला ही नहीं ।”
“ओह..ऐसा कैसे हो सकता है ! कि तुमने आज तक कोई खेल खेली ही नहीं !!”
“हो क्यों नहीं सकता है , मेरे साँवले चेहरे एवं चपटी नाक की वज़ह से हमारे साथी हमें चपटी बंदरिया कह कर चिढ़ाते थे ।”
“फिर मैंने दादी माँ के कहने पर बागवानी का शौक बचपन में अपना लिया । ईश्वर की कृपा से मुझे ससुराल में भी हरेभरे लॉन मिले अब मुझे किसी से कोई शिकायत नहीं है।”
“सच सच बताओ शोभा; क्या मुझसे भी तुम्हें कोई शिकायत नहीं है ?”
“ना जी ना; असली बागवान तो आप हैं , स्वस्थ बीज अनुकूल माहौल एवं उचित खाद पानी का प्रबंध तो आपने स्वयं के जिम्मे ले रखा है ।”
“मैं तो बस लालन-पालन कर रही हूँ ।”
“अच्छा जी ; तभी मैं कहूँ कि हमारे बच्चे इतने सभ्य सुसंस्कृत एवं होनहार कैसे हुए ?”
सुदर्शन जी की आँखों में शोभा को शोखियाँ स्पष्ट नज़र आने लगी । द्विअर्थी संवाद का मतलब समझते हुए उसने टका सा जवाब दिया ; “वो इसलिए महाशय कि हम साथ साथ हैं ।”
सुदर्शन जी तालियां बजाते हुए “वाह…वाह क्या बात है , तुमने समझने में बहुत देर कर दी मेरी प्रिया ।
शोभा की आँखें खुशी से छलक उठी अपने नामकरण पर ।
— आरती राय

 

*आरती राय

शैक्षणिक योग्यता--गृहणी जन्मतिथि - 11दिसंबर लेखन की विधाएँ - लघुकथा, कहानियाँ ,कवितायें प्रकाशित पुस्तकें - लघुत्तम महत्तम...लघुकथा संकलन . प्रकाशित दर्पण कथा संग्रह पुरस्कार/सम्मान - आकाशवाणी दरभंगा से कहानी का प्रसारण डाक का सम्पूर्ण पता - आरती राय कृष्णा पूरी .बरहेता रोड . लहेरियासराय जेल के पास जिला ...दरभंगा बिहार . Mo-9430350863 . ईमेल - [email protected]