ग़ज़ल
पार्टियों में द्वेष ज्यों बढ़ता रहा
दुश्मनी का भी जहर घुलता रहा |
माल सब गोदाम में भरते गए
बारहा गोदाम सब जलता रहा |
बस्तियां अब हो गई खाली सभी
दुश्मनी का फूल फल फलता रहा |
बेटियाँ जब भी कहीं जलती रही
सिसकियों का सिलसिला यूं चलता रहा |
इस चमन को तो उजाड़ा कारवाँ
वेदना में बागवाँ जलता रहा |
धीरे-धीरे जब निशा आगे बढ़ी
रोशनी के साथ सूर्य भी ढलता रहा |