ग़ज़ल
अब हरिक जन में हौसला होगा
जात अभिमान तोड़ना होगा |
देश में एक रूपता लाने
कौम आधार एक सा होगा |
राह में मुश्किलें जो’ भी आए
बारहा विघ्न लांघना होगा |
भेदभावों की’ नीति वर्जन कर
साम्यता पाठ सीखना होगा |
पाकि का सिर कुचलना’ निश्चित है
पाकि शमशीर तोड़ना होगा |
शत्रु है धूर्त चाल है गहरी
धमकियों से नहीं डरा होगा |
देश में तो विदेशी’ है असफल
गुप्त गद्दार ही मिला होगा |
कालीपद ‘प्रसाद’