दिल को करार आया, अँखियाँ चमक सी आई
जब चाँदनी सी’ छिप कर वह देख मुस्कुराई ।
इसरार भी अनोखा, इज़हार, हाय सदके
उसने अदा अनूठी, मुझको अजब दिखाई।
नयनों के’ तीर मारे, बतियाँ बनी जो मरहम
मर जाऊँ’ के जिऊँ मैं, ये जाँ समझ न पाई।
दिल ने बहुत ये चाहा, नजदीक से मैं’ छू लूँ
बस दूर ही खड़ी वो हर बार खिलखिलाई
बन रागिनी मधुर सी, शरबत सा’ घोल जाये
बिन रोशनाई लिख दी ज्यो चाँद ने रुबाई।
— रागिनी स्वर्णकार (शर्मा)