लघुकथा – उम्मीद अभी ज़िन्दा है
“देखो मिस्टर राजेश हमें अपनी कंपनी के लिए एक अनुभवी आदमी की ज़रूरत है ।”
“वो तो मैं हूं ।”
“पर हमें मेहनती आदमी की रिक्वायरमेंट है ।”
“डेफीनिटली मैं वैसा ही हूं ।”
“पर आदमी पूरी तरह से ईमानदार भी होना चाहिए ।”
“वो भी मैं हूं ।”
“आदमी पूरी तरह से सच्चा भी होना चाहिए ।”
“वो भी मैं हूं ।”
“आदमी पूरी तरह से स्पष्टवादी भी होना चाहिए ।”
“वो भी मैं हूं ।”
“आदमी ऐसा होना चाहिए ,जो कि हमारी कंपनी के फायदे के लिए ग़लत काम करने के लिए भी तैयार हो ।”
“नहीं, वो तो मैं नहीं कर सकता ।”
“आदमी ऐसा हो जो सरकार का नुक़्सान करके भी कंपनी के भला करने के लिए तैयार रहे ।”
“वो तो मुझसे नहीं हो सकता ।”
“पर सोच लो तनख़्वाह मुंहमांगी मिलेगी ।”
“नहीं, मुझे ग़लत काम पसंद नहीं ।”
“तनख़्वाह के अलावा आपको सुविधाएं भी कंपनी की ओर से ख़ूब सारी मिलेंगी ।”
“नहीं, मुझे आपकी कंपनी की पॉलिसी पसंद नहीं ।”
“नमस्ते,मैं चलता हूं ।आप किसी और आदमी को ढ़ूंढ लीजिए ।
” नहीं-नहीं,मिस्टर राजेश ! आप मेरी बात सुनिए। यू आर सिलेक्ट फॉर दिस जॉब। दरअसल हमारी कंपनी को जिस तरह के परफेक्ट व स्ट्रेट फॉरवर्ड आदमी की ज़रूरत है आप हंड्रेड परसेंट वैसे ही हैं, क्योंकि हमारी कंपनी केवल और केवल ऑनेस्टी में विलीव करती है ।”
“जी सर,अब मैं जाऊं ?”
‘ओके ,आप कल से काम पर आ सकते हैं ।”
“पर मिस्टर राजेश,एक बात बताऊं आपको कि आपको देखकर केवल लगता ही नहीं बल्कि पूरा विश्वास हो जाता है कि सच्चे मायनों में अभी भी सच्चे आदमियों की कमी नहीं, ‘उम्मीद अभी ज़िन्दा है’ ।
— प्रो. शरद नारायण खरे