ग़ज़ल
जब शाहीन बाग़ में गुज़ारी हमने रात थी
एक अजीब एहसास से हुई मुलाक़ात थी
मत पूछ क्या क्या देखा हमारी नज़रों ने
बस यूं समझ कि बिन बादल बरसात थी
बड़ा ही सुकून मिला जब मिला दिल उनसे
दरम्यां हमारे कोई शह न कोई मात थी
जीती थी हमने हारी हुई सारी बाज़ी भी तब
जब मोहब्बत ही इकलौती मेरी ज़ात थी
अब तो कहता है बाग़बान भी उस बाग का
‘कौशिक’ तेरी बातों में अलग ही एक बात थी
:- आलोक कौशिक