गीत – वही दोष में भागीदार
क्यों गंगा को मैली करते, इस पर करना हमें विचार ।
नीर प्रदूषित करते जो भी, वही दोष में भागीदार ।।
गंगा अपनी मैली करते, जाकर खुद के धोने पाप ।
पावन नदियाँ मैली होकर, शायद देती होगी श्राप।।
दूषित जल से बोलो कैसे, जनता का होगा उद्धार ।
नीर प्रदूषित करते जो भी, वही दोष में भागीदार ।।
नहीं जरा भी जल संकट की,जिनको हैं कोई परवाह।
व्यर्थ बहाते नीर बहुत सा, करते सबसे बड़ा गुनाह ।।
पाप-पुण्य के सदा बहाने, करते रहते कुछ व्यापार। ।
नीर प्रदूषित करते जो भी, वही दोष में भागीदार ।।
पॉलीथिन नदियों में डाले, बहुत बड़ा करते अपराध ।
पाबंदी के बाद आज तक, रहें सदा ही मतलब साध ।।
ऐसे व्यवसायी लोगों से, बन्द करें अपना व्यवहार ।
नीर प्रदूषित करते जो भी, वही दोष में भागीदार ।।
— लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला