पर्यावरण

दुनिया के सबसे बड़े बर्फ से ढके महाद्वीप अंटार्कटिक के पिघलने का मतलब

मनुष्य द्वारा किए कुकृत्यों की वजह से, ग्लोबल वार्मिंग से इस पृथ्वी के पर्यावरण और प्रकृति की सेहत उत्तरोत्तर बदतर होती जा रही है।अंटार्कटिक महाद्वीप के मौसम में बदलाव हेतु उसके उत्तरी छोर पर स्थित, अर्जेंटीना के एस्परांजा बेस पर, हुए नवीनतम वैज्ञानिक शोध के अनुसार, अभी हाल ही में अपनी रिपोर्ट जारी किया गया है, उस रिपोर्ट के परिणाम बहुत ही क्षुब्ध और चिन्तित करने वाले हैं, उस रिपोर्ट के अनुसार, इस समय यहां का तापमान भयंकर रूप से 18.3 डिग्री सेल्सियस तक दर्ज की गई है, वहां के वैज्ञानिकों के अनुसार इतना तापमान तो गर्मी के दिनों में भी नहीं हुआ करता ! गर्मी में भी यहाँ का अधिकतम तापमान 15 डिग्री सेल्सियस तक ही जाता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार अंटार्कटिक महाद्वीप का तापमान पिछले 50 वर्षों में 3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी देते हुए बताया है कि अंटार्कटिक महाद्वीप का सम्पूर्ण क्षेत्रफल 1.42 करोड़ वर्ग किलोमीटर है, जिस पर औसतन 1.9 किलोमीटर मोटी बर्फ की मोटी चादर करोड़ों वर्षों से जमी हुई है। वैज्ञानिकों के अनुसार पिछले 1979 से 2017 तक ग्लोबल वार्मिंग की वजह से अंटार्कटिक में बर्फ पिघलने की दर छः गुना तक बढ़ गई है, अंटार्कटिक में बर्फ की मोटी चादर में जगह-जगह दरारें नजर आ रहीं हैं, वहाँ की बर्फ तेजी से पिघल रही है।
वैज्ञानिक रिपोर्ट के अनुसार, वहाँ की बर्फ जिस खतरनाक गति से पिघल रही है, उससे यह आशंका है कि अगले 100 वर्षों में लगभग 3मीटर (9.84 फीट )तक और अगर अंटार्कटिक महाद्वीप की सम्पूर्ण बर्फ पिघलती है, तो 60 मीटर (196.8 फीट )तक समुद्र की सतह उपर उठ जाएगी, जिससे मिश्र का एलेक्जेंड्रिया, नीदरलैंड का रोट्रडम, थाइलैंड का बैंकाक, वर्जिनिया का वर्जिनिया बीच, इंडोनेशिया का जाकार्ता, नाइजीरिया का लागोस, बांग्लादेश का ढाका, अमेरिका का ह्यूस्टन, फ्लोरिडा और न्यू ओरलियंस आदि शहर समुद्र में समा जाएंगे। सबसे दुःखद स्थिति मालदीव जैसे देश का होगा, जो पूरा देश ही समुद्र में सदा के लिए डूब कर दुनिया के नक्शे से गायब हो जायेगा ! इस स्थिति में पृथ्वी के नक्शे का स्वरूप ही बदल जायेगा, क्योंकि जलस्तर उठने से समुद्र दुनियाभर में तट पर अतिक्रमण कर अपना क्षेत्रफल विस्तारित कर अब तक के थल के क्षेत्रफल को एक तिहाई को और छोटा करके सम्भवतया एक चौथाई न कर दे !
भविष्य में पर्यावररण वैज्ञानिकों द्वारा ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के अगर समुचित वैज्ञानिक समाधान न निकाला जा सका, तो बहुत सी अन्य विसंगतियों का भी तत्कालीन दुनिया को सामना करना पड़ सकता है, जैसे भयंकर गर्मी, फसलों का उत्पादन दयनीय स्थिति तक घट जाना तथा अन्न की पौष्टिकता कम हो जाना, दुग्ध उत्पादन कम हो जाना, मत्स्य पालन उद्योग पर भारी संकट आदि-आदि बहुत सी परेशानियाँ आ सकतीं हैं।
इसलिए इस पृथ्वी के सबसे बुद्धिमान प्राणी होने के नाते, मनुष्यप्रजाति की यह महती जिम्मेदारी बनती है कि वह इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में सांसों के स्पंदन से युक्त, अपनी हरी-नीली आभा से युक्त, अपने पर्यावरण, प्रकृति के अवर्णनीय सुन्दरता और करोड़ों-अरबों वानस्पतिक व अद्भुत जीवों से युक्त, अपनी प्यारी, लाडली, इकलौती धरती को बचाने का भरसक प्रयत्न करे। तभी इस पर स्थित मनुष्यप्रजाति सहित समस्त जैवमण्डल भी बच सकेगा। आशा की जानी चाहिए कि यह सद् कार्य और पावन, पुनीत कार्य अवश्य हो।

— निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

"गौरैया संरक्षण" ,"पर्यावरण संरक्षण ", "गरीब बच्चों के स्कू्ल में निःशुल्क शिक्षण" ,"वृक्षारोपण" ,"छत पर बागवानी", " समाचार पत्रों एवंम् पत्रिकाओं में ,स्वतंत्र लेखन" , "पर्यावरण पर नाट्य लेखन,निर्देशन एवम् उनका मंचन " जी-181-ए , एच.आई.जी.फ्लैट्स, डबल स्टोरी , सेक्टर-11, प्रताप विहार , गाजियाबाद , (उ0 प्र0) पिन नं 201009 मोबाईल नम्बर 9910629632 ई मेल [email protected]