अना सम्मान लहजा और तेवर छीन लेती है…
अना सम्मान लहजा और तेवर छीन लेती है
ग़रीबी क़द्र क्या दस्तार क्या सर छीन लेती है
पदों पर बैठने वालों न देखो सिर्फ़ अपनो को
ये ख़ुदगर्जी हुनरमंदों के अवसर छीन लेती है
हुकूमत पूछती है प्रश्न जब प्रश्नों के उत्तर में
रियाया के लबों से प्रश्न अक्सर छीन लेती है
दिखाकर भाषणों से ख़्वाब पक्के घर बनाने के
सियासत मुफ़लिसों के सर के छप्पर छीन लेती है
कभी मिलते नही यूँ तो सुकूं के पल बहुत मुझको
मिलें भी तो किसी की याद आकर छीन लेती है
धधकती है किसी के पेट में जब आग रोटी की
लबों से धर्म सच्चाई के आखर छीन लेती है
किसी की आँख से बहती है जब भी बेबसी बंसल
मेरी आँखो में उभरे शोख मंज़र छीन लेती है
सतीश बंसल
०३.०२.२०२०