गीत/नवगीत

गीत – संदेश बिना आ जाओगे

जब गीत बुलाएँगे मेरे, तुम खुद को रोक न पाओगे
संदेश बिना आ जाओगे।

प्रेमी मन का जब गठबंधन, इक -दूजे से हो जाता है
उठती है उर में हूक कहीं, प्रियतम जब कोई बुलाता है
ये तो वाणी है रुहों की, कानों से ना सुन पाओगे।
संदेश बिना आ जाओगे।

दुनिया कहती है गीत जिन्हें, मेरे अनुराग की सरिता है
इसकी धाराएँ और पनघट, प्रेमी उर का घट भरता है
मेरी गंगा के अमृत को, बिन चखे ही क्या रह जाओगे?
संदेश बिना आ जाओगे।

आकाश-क्षितिज की सीमाएँ, इनको तो रोक न पाती है
नारायण के कानों तक भी, आवाज़ प्यार की जाती है
फिर तुम तो हो भगवान मेरे, क्या मुझको यूँ तड़पाओगे?
संदेश बिना आ जाओगे।

— शरद सुनेरी