पतझर के बाद बहारों का, मौसम आता है आएगा…
बगिया में ठूठ हुई शाखों, को देख निराश न हो माली।
पतझर के बाद बहारों का, मौसम आता है आएगा।।
दुख देते हैं पीड़ा के पल, उल्लासित करता हर्ष कभी।
सबके जीवन में आता है, अपकर्ष कभी उत्कर्ष कभी।।
परिवर्तन का है नियम अटल, कोई भी रोक न पाएगा…
पतझर के बाद बहारों का, मौसम आता है आएगा…
फूलों का खिलना बंद हुआ, माना हरियाली नही रही।
भँवरों की गुंजन कलियों की, वो अदा निराली नही रही।।
पर काल चक्र चलते चलते, फिर चक्र वही दोहराएगा…
पतझर के बाद बहारों का, मौसम आता है आएगा…
पोखर में पड़ी दरारें क्या, चिंता की रेखा माथे पर।
मिट जाएंगी जब झूम झूम, कर बरसेगा सावन जमकर।।
नयनों के निर्झर रोक समय, नयनों में स्वप्न सजाएगा…
पतझर के बाद बहारों का, मौसम आता है आएगा…
है क्षणिक वेदनाओं का पल, उपवन की रंगत का खोना।
तैयारी नवल सृजन की है, तरु शाखों कर पतझर होना।।
यह याद रहे तरुपात यही, कल कोंपल नवल उगाएगा…
पतझर के बाद बहारों का, मौसम आता है आएगा…
सतीश बंसल
०७.०२.२०२०