संगम
”गौरव जी इस मंच पर कम ही आते हैं पर जब उनकी रचना आती है साहित्य का संस्कृति से संगम हो जाता है.” एक संदेश आया. उसके तुरंत बाद उसी मंच पर गौरव भाई का एक प्रेम-गीत अवतरित हुआ- ”प्रेम को प्रेम में हमने ऐसे गढ़ा!!”
गौरव भाई ने यह गीत फरवरी के पहले सप्ताह में अपने विवाह की सालगिरह के उपलक्ष में लिखा था. स्वभावतः उस समय बसंत की सुहानी ऋत्तु अपने पूरे निखार पर थी, वेलेंटाइन डे नजदीक था और गौरव की गौरवमई लेखनी से सचमुच इस गीत में साहित्य और संस्कृति का अद्भुत संगम हो गया था.
गौरव भाई के इस गीत ने ऐसी धूम मचा दी, कि विशुद्ध प्रेम गीतों की बौछार हो गई.
फिर क्या था! प्रेम गीत भी आते गए और प्रेम पर गीत भी आते गए. वेलेंटाईन वीक के बाल गीत आए, हर दिन जो चॉकलेट डे होता, दो-दो वेलेंटाइन डे मनाऊंगा, टैडी डे, रोज़ डे, प्रपोज़ डे बाल गीतों ने बाल-गोपालों को भी वेलेंटाईन मनाने का मौका दे दिया. दो-दो वेलेंटाइन डे मनाऊंगा बाल गीत में पाश्चात्य संस्कृति नहीं, भारतीय संस्कृति का वर्चस्व दिखाई दिया. साहित्य और संस्कृति का सुसंगम हो गया था.
प्रेम के गीत भी नमूदार हुए. प्रेम प्रभु का वरदान है, प्रेम जगत का सार है, प्रेम के त्योहार, संबंध सुहाना है, मधुर मुझे मन मीत मिला जैसे विशुद्ध साहित्यिक और भारतीय संस्कृति में रसे-पगे गीतों ने भी साहित्य और संस्कृति के सुसंगम में कोई कमी नहीं छोड़ी.
भूले-बिसरे साहित्य और संस्कृति के संगम को एक नया आयाम मिल गया था.
चलते-चलते
”प्रेम को प्रेम में हमने ऐसे गढ़ा!!” गीत को गौरव भाई ने न केवल लिखा है, बहुत खूबसूरती से गाया भी है. गौरव भाई के उस गीत का ऑडियो लिंक-
https://drive.google.com/file/d/1FBrR0U2yc9VitmXLgzCju2tpYD7GOYss/view?usp=drivesdk
गौरव भाई के ब्लॉग की वेबसाइट है-
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/author/gaurav_d81yahoo-com/
गौरव भाई की न केवल इस रचना में साहित्य और संस्कृति का संगम है बल्कि उनकी हर रचना में साहित्य और संस्कृति के संगम की झलक देखी जा सकती है. गौरव भाई की प्रतिक्रियाओं में भी साहित्य और संस्कृति का संगम दृष्टव्य है.