बसंत आया है
डाल-डाल पर गुल खिले, बसंत आया है।
पात-पात हँसकर कहे, बसंत आया है।
चारु चंद्र की चाँदनी, विहार को उतरी।
स्वर्ग लोक भू पर दिखे, बसंत आया है।
सुर के साथ ठंडी हवा, फिज़ाओं में बिखरी।
तार-तार मन का गुने, बसंत आया है।
बाग-बीच कलिकाओं से, किलोल भँवरों की।
फूल-फूल तितली उड़े, बसंत आया है।
कुंज कुंज में कोकिला, खुमार से कुहकी।
आम्र बौर तरु पर लदे, बसंत आया है।
खूब दृष्टि को भा रहा, उफान नदियों का।
धार-धार को सुर मिले, बसंत आया है।
स्वर्ण वर्ण सरसों खिली, विशाल खेतों में।
लख किसान पुलकित हुए, बसंत आया है।
नम हवाओं के स्पर्श से, प्रसन्न है वसुधा।
बीज-बीज अंकुर उगे, बसंत आया है।
सृष्टि रूप नव से जगी, उमंग जीवन में।
पर्व काश! घर घर मने, बसंत आया है।
-कल्पना रामानी,नवी मुंबई