ग़ज़ल
चलना हल्की चाल मुसाफिर।
मत होना बे हाल मुसाफिर।
संकट है विकराल मुसाफिर।
काम नहीं अब टाल मुसाफिर।
दुख तेरा क्या समझेगा वो,
जिसकी मोटी खाल मुसाफिर।
एक क़दम तक भारी उसको,
इतना है बेहाल मुसाफिर।
जिस पर तेरा आज बसेरा,
काट नहीं वो डाल मुसाफिर।
ज़ुल्म ज़बर के जो मारे हैं,
बन जा उनकी ढाल मुसाफिर।
वज़नी गहने भारी कपड़े,
जी का हैं जंजाल मुसाफिर।
आरोही अवरोही होना,
मत खोना लयताल मुसाफिर।
पग पग पर हैं खतरे भारी,
फैला हर सू जाल मुसाफिर।
प्यार मुहब्बत सब धोखा है,
रोग नहीं ये पाल मुसाफिर।
— हमीद कानपुरी