ज़ख्म हरा रहता है
अश्कों की कोई खता नहीं आंखों से जो बहता है,
हो कोई भी मौसम लेकिन ज़ख्म हरा रहता है।
एक तुम्हें चाहा तो फिर न चाहत हुई दोबारा,
दिल की कोने कोने में अक्स तेरा ही रहता है।
तड़प कर रह जाते हैं कुछ एहसास दिल के,
भूली बिसरी यादों का कारवां कहां ठहरता है?
मुस्कुराते चेहरे के पीछे भी दर्द छुपा करता है,
निगाहों से कुछ और लबों से कुछ और बयां रहता है।
लाख तन्हाइयों की पनाह में कोई जाना चाहे,
ख़ामोशी के आलम में भी शोर मचा रहता है।
— कल्पना सिंह