सोने के पिंजरे में बंद हुई मैना
बहुत कहा उससे पर मानी न कहना।
ऊँची हवेली में फंस गई मैना
स्वर्णिम चमक में डूब गई मैना
लालच के चक्र ने घेर लिया उसको
कट गए पंख फड़फड़ाए मैना।
सोने के पिंजरे में बंद हुई मैना
बहुत कहा उससे पर मानी न कहना।
मोहरों पर तन मन लुटा गई मैना
आँसू की लड़ियाँ पिरो रही मैना
जीवन की खुशियां लगा दी दाव पर
घुट घुट कर जीवन जी रही मैना।
सोने के पिंजरे में बंद हुई मैना
बहुत कहा उससे पर मानी न कहना।
स्वर्ण श्रृंखला से घायल है मैना
आकाश देख देख रोई थी मैना
कनक कटोरी से नीम भली है
सब कुछ लुटा के समझी थी मैना
सोने के पिंजरे में बंद हुई मैना
बहुत कहा उससे पर मानी न कहना।
— निशा नंदिनी भारतीय