सुकून
तुम मुझे मेरा सुकून लौटा दो
वो खोया हुआ समय लौटा दो ।
रखा था संभालकर बरसों से
वो मेरा कीमती सामान लौटा दो ।
घुँघरू की तरह खनकते थे कभी
वो बोल मुझे आज फिर से सुना दो ।
चले भी आओ कहाँ खो गए हो तुम
वो मेरी खोई हुई हँसी लौटा दो ।
चिलमन से झाँकती थी कभी आँखें
वो मेरी हसरतें तुम लौटा दो ।
गुजर रहा था वक़्त बिन तुम्हारे
वो मेरा हसीन ख्वाब फिर से लौटा दो ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़