ग़ज़ल
हर कोई सिर्फ रौशनी से मिले।
भूल कर भी न तीरगी से मिले।
सादगी से उन्हें बड़ी उल्फत,
जब मिले उनसे सादगी से मिले।
उससे जब से हुई मेरी अनबन,
फिरनहरगिज़ कभीकिसी सेमिले।
आज लहजा अजीब था उसका,
ये लगा एक अजनबी से मिले।
बात अच्छी बुरी कहूँ हँस कर,
ये हुनर मुझ को शायरी से मिले।
उससे मिलकर हमीद को ये लगा,
आज दिन एक ताज़गी से मिले।
— हमीद कानपुरी