ग़ज़ल-दूसरा मिसरा नहीं मिला…
टूटा जो दिल तो दिल को दिलासा नहीं मिला.
राँझे को हीर, हीर को राँझा नहीं मिला.
सोचा जो दिल की कह दूँ तो हिम्मत नहीं हुई
हिम्मत हुई तो कहने का मौक़ा नहीं मिला.
इतने हैं रिश्तेदार कि मुश्किल शुमार है,
कहते हैं जिसको रिश्ता,वो रिश्ता नहीं मिला.
बिछुड़े हैं जबसे तुमसे हम ऐसे भटक गये,
जिस पर चले थे साथ वो रस्ता नहीं मिला.
अब भी अधूरे शेर सी लगती है ज़िंदगी,
तुम जैसा कोई दूसरा मिसरा नहीं मिला.
— डाॅ. कमलेश द्विवेदी