बसंत
पीली सरसों खेत में, नाच रही चहुँ ओर।
मानो पीली शाटिका, लहराती पुरजोर।।
लहराती पुरजोर, चढ़ी है नयन – खुमारी।
कामदेव की टेर , कर रही रती कुमारी।।
‘शुभम’ झुका आकाश, ओढ़कर चादर नीली।
इठलाती है भूमि, धारकर साड़ी पीली।।1।।
पीले पल्लव झर रहे, बिखरी – बिखरी छाँव।
उधर लाल कोंपल उगीं, निखरे – सुथरे गाँव।।
निखरे – सुथरे गाँव, नया जीवन है आया।
गोरस देती गाय , समा शोभन मनभाया।।
‘शुभम’ सुखद ऋतुराज, होलिका – गीत सुरीले।
कानों में रस घोल रहे , भौंरे पट पीले।।2।।
पीले – पीले वसन धर, आए हैं ऋतुराज।
स्वागत करने के लिए , खूब सजाया साज।।
खूब सजाया साज, देह फूलों से महकी।
गाते भँवरे गान, गूँज कोकिल की चहकी।।
गेंदा ‘शुभम’ गुलाब, पुहुप कचनारी नीले।
ईख दे रही सीख , भरो रस पीले – पीले।।3।।
पीला रंग है ज्ञान का , देता सीख वसंत।
वसन ,मुकुट सब पीत हैं, ऐसा ऋतुपति कन्त।।
ऐसा ऋतुपति कन्त, महकता कली- फूल में।
नहीं कभी दुर्गंध , दे रहा कभी भूल में।।
‘शुभम’ संत का गात, न ढँकता काला, नीला।
चीवर रंगता पीत, ज्ञान का शुभ रंग पीला।।4।।
पी ली जिसने प्रेम की , कलशी भर आकंठ।
उसे कौन जन कह सका, अज्ञानी या लंठ।।
अज्ञानी या लंठ, प्रेमऋतु मनभाई है।
नर – नारी तरु – बेल , परस्पर लिपटाई है।। .
‘शुभम’ सृजन का सार, जिंदगी उसने जी ली।
होता उर का नेह , माधुरी जिसने पी ली।।5।।