बादल
मैं घन,बादल कहलाता हूँ।
सबको ही मैं नहलाता हूँ।।
खारे सागर से जल भरता।
नभ में ले जा मीठा करता।।
धरती पर फिर बरसाता हूँ।
मैं घन,बादल कहलाता हूँ।।
गरमी में धरती तपती है।
प्यासी!प्यासी!नित जपती है।
बुँदियाँ बरसा सहलाता हूँ।
मैं घन, बादल कहलाता हूँ।।
बंजर ,जंगल या फसलों पर।
खेतों , नगरों सब नस्लों पर।।
नम शीतलता गहराता हूँ।
मैं घन, बादल कहलाता हूँ।।
अधनंगे बच्चे छत जाते ।
हम बादल उनको नहलाते ।।
गर्जन कर उन्हें डराता हूँ।
मैं घन, बादल कहलाता हूँ।।
जब हवा साथ में होती है।
झंझा में रजनी रोती है।।
बिजली से ‘शुभम’ डराता हूँ।
मैं घन, बादल कहलाता हूँ।।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’