कविता

वादा

सोचती हूं
कितना छोटा सा शब्द है ये “वादा”
पर इसका वजूद साँसों की अंतिम छोर तक……

कितने तरह के वादे होते हैं
प्रेम का वादा
दोस्ती का वादा
रिश्तों का वादा
प्रकृति का वादा
और न जाने कितने तरह- तरह के वादे

हर दिन हजारों की तादात में
वादे लेते हैं जन्म
और फिर उनमें से कुछ समय उपरांत
मृत्य को प्राप्त

उफ ! इस चक्र में
न जाने कितने ही जिंदगियां
दुख के दहलीज को मापती होंगी
और सीने में दर्द के भार से मौत को ढूंढती होंगी

पर इसके दूसरी तरफ खुशहाल दुनिया
जो इन्हीं वादों के मजबूती पे
अपने सपनों का आशियाना गढ़ते हैं

पर जो भी हो
ये वादे न होता तो अच्छा होता
जिंदगी अपने गतिशीलता अनुसार चलती रहती
खुशी “औ”गम जैसे प्लस माईनस तो न होते।

अगर वादा टूटता है तो दिल की पीड़ा
आपको पूरी तरह रोगी बना देता है।

— बबली सिन्हा

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- [email protected]