कविता

चल संभल कर

है दूर तक अँधेरा और कोहरा भी गहरा।
संभल कर चल , रोशनी पर भी है पहरा।।

कोहरे को जरा ओस की बूंदों में बदलने दे।
राह में फैले घनघोर अँधेरो को छटने तो दे।।

माना उजाले के सहारे बहुत नही है पास तेरे,
बस जुगनू के उजाले पर खुद को चलने दे।

मंजिल की डगर मे बहकावे बहुत से है लेकिन,
कुछ मील के पत्थर के सहारे खुद को चलने दे।

कोई सिरा मंजिल का कभी तो दिख जायेगा।
अपनी पलकों को पल भर भी ना झपकने दे।।

नीरज त्यागी

पिता का नाम - श्री आनंद कुमार त्यागी माता का नाम - स्व.श्रीमती राज बाला त्यागी ई मेल आईडी- [email protected] एवं [email protected] ग़ाज़ियाबाद (उ. प्र)