सुहाना सवेरा
”अब तो अपने जीवन की ढलती सांझ है, अब क्या चलना और कैसा चलना!” रेडियो पर बजते गीत ”जीवन चलने का नाम, चलते रहो सुबह-शाम” को सुनते हुए संभावना आंटी के मन में विचार आया.
”लो बोलो, ये भी कोई बात हुई! एक-एक कदम चलते हुए ही तो जीवन के 95 साल पूरे किए हैं. आज फिर एक और जन्मदिन आ गया और बच्चों ने सुबह-सुबह 96वां साल शुरु होने की बधाई दी है, यह सब चलते रहने के कारण ही तो हुआ है.” संभावना आंटी ने पहले आए विचार को झटक दिया.
”एक बार पहले भी तो मन ने आगे चलने से इनकार कर दिया था न! 5 साल पहले रात को सोते-सोते ही शांत स्वभाव वाले पतिदेव का शरीर हमेशा के लिए शांत हो गया था. तब लगा था, अब जीने का कोई मायना ही नहीं बचा है.” संभावना आंटी की यादों का दरीचा खुल गया था.
”तब बेटे विवेक ने मुझे अपनी भूली-बिसरी पेंटिंग की याद दिला दी थी. नन्हे-नन्हे रंबिरंगे बिंदुओं वाले भारत के बहुत पुराने ऑर्ट में मैंने ऑस्ट्रेलियन ऑर्ट AB Original को मिश्रित कर एक नया रूप दे दिया था.” संभावना आंटी के चेहरे पर मुस्कान आ गई थी.
”विवेक की पत्नि यानी मेरी पुत्रवधू मणि को इस ऑर्ट में प्रसिद्धि की बहुत संभावना दिखाई दी थी. इसलिए आज घर में ही उसने बड़े पैमाने पर मेरी ढेर सारी पेंटिंग्स की प्रदर्शनी आयोजित की थी. सबके भारतीय और ऑस्ट्रेलियन मित्र आए थे. कितनी सराहना हुई थी मेरे ऑर्ट की!”
ऑस्ट्रेलियन काउंसिलर डगलस ने कहा था- ”इस ऑर्ट की सबसे बड़ी विशेषता यह है, कि इसमें कहीं भी ढलती सांझ नहीं दिखाई दे रही, हर पेंटिंग से सुहाना सवेरा झांक रहा है.”
”पेंटिंग बनाते समय मन में सुनहरी संभावना हो तो ढलती सांझ की पेंटिंग से भी सुहाना सवेरा ही झांकने लगता है.” संभावना आंटी ने कहा था.
तभी किसी को रेडियो पर जन्मदिन मुबारक कहते हुए गीत बजने लगा था-
”चमका-चमका सुबह का तारा.”
संभावना आंटी का चेहरा भी सुहाने सवेरे के उजियारे से सराबोर हो गया था.
जैसे विचार होतें हैं वही कृति में झाँकने लगतें हैं चाहें भोजन हो या पेंटिंग. जीवन की ढलती साँझ मे एक सकारात्मक मोड़ की ओर बढ़ते पग सुहाने सवेरे की संभावनाओं को प्रोत्साहित कर जीवन में नवीन उत्साह का संचार करते हैं.