जीना अगर तुम…
जीना अगर तुम ज़रा चाहते हो।
तो ज़ख्मों का रंग क्यों हरा चाहते हो।।
गुनाहों से तौबा सी करने का मन है।
क्या कह दिया है ये क्या चाहते हो।
कलम छीन कर यूँ खंजर थमा कर।
बता ये रहे हो भला चाहते हो।।
क्यों ज़ख्मों को खुल के नहीं खोल देते।
क्यों कहते नहीं कि दवा चाहते हो।।
दुआओं को पतवार करके उतरना।
उफनती नदी रास्ता चाहते हो।।