सामाजिक

महिला : गृहणी या कामकाजी

महिला यदि गृहणी हो तो “तुम करती क्या हो”…यदि भविष्य उन्मुख कामकाजी हुई तो “ये क्या घर संभालेगी**
पारंपरिक रूप से हमारा भारतीय समाज पितृसत्तात्मक रहा है । यहाँ पुरुष दिन भर खटिया तोड़ते हुए  ये आशा करता है कि उसे उठ कर एक गिलास पानी न लेना पड़े घर में । उसकी पत्नी या फिर कोई अन्य सेवक  बांदी या उसकी बेटी उसे वहीं खाट पे सब पहुंचा दे । घर से बाहर वो बेशक दिन रात हाड़ तोड़ मेहनत कर लेगा पर घर में एक गिलास पानी ले के नहीं पियेगा । ऐसे में उसकी पत्नी  यदि गृहणी हो तो चल जाता है ,परंतु …….. बदकिस्मती से अगर वो बेचारी नौकरी पेशा हुई तो बड़ी विकट स्थिति हो जाती है । उस गृहणी बेचारी को त्रिदेवी की भूमिका में आना पड़ जाता है । 8 घंटे की नौकरी और उसके बाद माँ पत्नी और बहू …।
वैसे तो गृहणी को कई नामों से नवाजा गया है जैसे गृह लक्ष्मी,अन्नपूर्णा, जीवनसंगिनी,गृह स्वामिनी आदि,कहते हैं गृहणी उसे कहा जाता है जिसका सारा घर कर्जदार होता है पर क्या वास्तव में ऐसा होता है… ?
“गृहणी के कार्यों का मूल्यांकन असंभव है,फिर भी कई बार उनसे यह पूछा जाता है कि तुम करतीं क्या हो ?
यह वाकई एक यक्ष प्रश्न है,जहां महिलाएं निरुत्तर हो जातीं है…”
तुम दिन भर करती क्या हो …?हाँ ,सचमुच दिन भर करती भी क्या है गृहणी? एक सामान्य सी गृहणी
सुबह से शाम तक जो बिना किसी शुल्क के बनाये रखती है संतुलन सारे परिवार का भला करती भी क्या है ..?सुबह उठती है और चकरघिन्नी से सारे घर को संभालती है,यहाँ से वहां तक ,इस्तरी किये कपडे जिन्हें निकाल कर तुम मर्द सब आसानी से पहन जाते हो अपने दफ्तर और महसूसते हो खुद को लार्ड साहब ,उस वक्त गृहणी समेट रही होती है, एक लम्बी साँस भर कर, तुम्हारे और बच्चों के उतर कर फेंके इधर उधर कपड़े … सच बात है करती ही क्या है एक गृहणी …?गृहणी  बाजार जाती है तुम बटुए का बोझ उठाये चलते हो और गृहणी एक खाली झोला मुट्ठी में बांधे तुम्हारे पीछे पीछे हो लेती है तुम चुकाते हो कीमत उन सभी जरुरी सामान की जो जीने के लिए हर महीने जरुरी हैं ,और गृहणी उस भरे हुए झोले का बोझ उठाये चल पड़ती है संग तुम्हारे हाँ सच करती क्या है गृहणी …?सर्दियों में तुम्हारी पसंद के साग और मक्के – बाजरे की रोटी सुविधाओं से पूर्ण रसोई में बनाती है … और तुम्हे खाते हुए देख कर सुख पाती है ,हाँ सच करती क्या है गृहणी …?स्कूल से आये बच्चों की दिन भर की धमाचौकड़ी से लेकर उनके होमवर्क कराना पल पल उनकी और तुम्हारी जरूरतों का ध्यान रखना …हाँ सच करती ही क्या है गृहणी … ?कि शाम को जब कभी तुम
समय पर घर नहीं पहुंचे तुम्हारे आने पर रो-रो कर झगड़ती है… कहाँ रहे इतनी देर, क्यों देर हुई .. एक फोन कर देते … पर इस झगडे के पीछे उसकी चिंता को
तुम कभी नहीं समझ सके…हाँ सच करती ही क्या है गृहणी …?क्या उम्मीद करूँ ??
कि अब तुम को ये उत्तर मिल गया होगा —- कि आखिर  दिन भर करती क्या है गृहणी…???
काश कि एक गृहणी की भी सरकार ने तनख्वाह तय की होती …!!
यदि बात करें नौकरी पेशा महिलाओं की तो रोजगार के हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों का वर्चस्व तोड़ रही हैं, खासकर व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त महिलाओं के काम का दायरा बहुत बढ़ा है,लेकिन कामयाबी के बावजूद परिवार से जो सहयोग उन्हें मिलना चाहिए, वह नहीं मिल रहा है।
आज के दौर में महिलाएं शिक्षा, पत्रकारिता, कानून, चिकित्सा या इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उल्लेखनीय सेवाएं दे रही हैं। पुलिस और सेना में भी वे जिम्मेदारी निभा रही रही है।पर ज्यादातर महिलाओं को पेशेवर जिम्मेदारियों के साथ ही घर की जि़म्मेदारी भी उठानी पड़ती है। जिसका उनके स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है।
जहां एक तरफ पुरुष ऑफिस से घर आने के बाद आराम करना अपना हक समझते हैं वही कामकाजी महिलाओं को ऑफिस से घर के बाद घर के काम ,बच्चों,व परिवार के सभी सदस्यों की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। इन सब के बीच वो अपने प्रति व अपने स्वास्थ्य के प्रति ध्यान नहीं दे पाती नतीजा डिप्रेशन शिकार हो जाती हैं या गम्भीर बीमारी की जकड़ में आ जाती है। प्रायः देखा जाता है कि कामकाजी महिला सुबह घर के, बच्चो के, परिवार के अन्य सदस्यों के कार्य निपटा कर ऑफिस जाती है व वापस आकर पुनः देर रात तक घर के काम व जिम्मेदारी निभाती है…।
ऐसे में जरूरी है कि घर के अन्य सदस्य घर के कार्य में हाथ बंटाए व गृहणी का व उसके स्वास्थ्य का ध्यान रखे क्योकि वो परिवार के रीढ़ की हड्डी होती है।
अक्सर घरो में देखा जाता है कि कामकाजी महिलाये या तो घर और ऑफिस के बीच में पीस कर रह जाती या घर सम्भालने के लिए कैरियर की आहुति दे देती हैं लेकिन यदि परिवार कामकाजी महिलाओं की मदद करे उनकी जिम्मेदारी हल्की करे, घर के कामो में हाथ बंटाए तो वो घर, बाहर दोनों जगह सुचारू रूप से काम कर सकती हैं…।
*”पुरुष प्रधान भारतीय समाज को अपनी कामकाजी बहुओं के प्रति अपना व्यवहार बदलना चाहिए ।”*
भारतीय महिलाएं, जिन्होने गृहणी के रूप में अपने अपने घरों का बजट सम्भाला है, चाहे उनकी शिक्षा का स्तर जो भी रहा हो, चाहे घर की आमदनी कुछ भी रही हो, घर का वित्त मंत्रालय सँभालते हुए इन्ही महिलाओ ने ना जाने कितने IITians, IIM ग्रेजुएट और प्रतिभाएं दिए है।
भारत की सभी  मातृ शक्ति को मेरा सत सत नमन… l
      * “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।*
— रीमा मिश्रा “नव्या”