यादों के झरोखे से-16
साढ़े तीन मिनट (लघुकथा)
बिलकुल ठीक हो जाने के बाद दीपक को अपने बीते दिनों की याद आ रही थी.
भीषण ठंड के मौसम में दीपक को रात में अक्सर 2-3 बार लघुशंका के लिए उठना पड़ता था. बिस्तर से उठने के बाद वह एकदम चल पड़ता था. कई बार वह रात को गिरते-गिरते बचा था. उसने सुना भी था, कि अधिकतर हार्ट अटैक रात में ही होते हैं. अब तो उसे डॉक्टर के पास जाना ही था.
डॉक्टर ने जरूरी जांच के बाद उसको हार्ट अटैक की संभावना से इनकार नहीं किया था. उसे जरूरी दवाओं के सार्ह जरूरी हिदायतें देना भी अपना कर्त्तव्य समझा था.
”ठंड के कारण शरीर का ब्लड गाढ़ा हो जाता है तो वह धीरे धीरे कार्य करने के कारण पूरी तरह हार्ट में नहीं पहुँच पाता और शरीर छूट जाता है. इसी कारण से सर्दी के महीनों में 45 वर्ष से ऊपर के लोगों की ह्रदयगति रुकने से दुर्घटनाएं अत्यधिक होती पाई गई हैं, इसलिए हमें सावधानी अत्यधिक बरतने की आवश्यकता है.” डॉक्टर ने कहा था.
”हमें क्या सावधानियां रखनी चाहिएं?” दीपक का प्रश्न स्वाभाविक था.
”साढ़े तीन मिनट का प्रयास एक उत्तम उपाय है.
1. नींद से उठते समय आधा मिनिट गद्दे पर लेटे हुए रहिए.
2. अगले आधा मिनट गद्दे पर बैठिये.
3. अगले ढाई मिनट पैर को गद्दे के नीचे झूलते छोड़िये.
साढ़े तीन मिनट के बाद आपका मस्तिष्क बिना खून का नहीं रहेगा और ह्रदय की क्रिया भी बंद नहीं होगी! इससे अचानक होने वाली मौतें भी कम होंगी.” डॉक्टर ने अपनी राय जाहिर की थी.
दीपक ने साढ़े तीन मिनट के उपाय को रट लिया था और त्वरित ही उसका अनुसरण करने लग गया था.
अपने मिशन में कामयाब होने के लिए,लक्ष्य के प्रति एकचित्त निष्ठावान होना पड़ेगा.दीपक ने यही किया. डॉक्टर के शुभ परामर्श को उसने अपनी जीवनचर्या बना लिया और भयंकर रोग के दुःखद परिणाम की ओर से निश्चिंत हो गया.