राजनीति

अफगानिस्तान में,अमेरिका अपने बनाए जाल में खुद ही फँसा है !

भारतीय समाज में एक कहावत बहुत प्रसिद्ध है कि ‘रेशम का कीड़ा खुद अपने मुँह से निकाले धागे में लिपटते-लिपटते एक दिन खुद ही उसमें कैद हो जाता है। ‘ आज अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकियों से उलझे अमेरिका को पूरे 18 साल से भी ज्यादे दिन हो चुके ! जिसमें अमेरिका के अरबों-खरबों डॉलर अब तक इस युद्ध के संचालन व अपने सैनिकों के विदेशी भूमि पर ठहरने,उनकी सुरक्षा,खाने-पीने और युद्धक साजोसामान पर खर्च हो चुके होंगे। इसके अलावे सबसे बड़ी बात महाबली अमेरिका के भी 2450 सैनिक इस युद्ध में अपने प्राण गँवा बैठे हैं। इस लडा़ई में अगानिस्तान में भी आज तक तालिबानी आतंकवादियों सहित कुल डेढ़ लाख (150000 ) लोग मारे जा चुके हैं। अमेरिका जैसे देश में अपने एक सैनिक के भी मारे जाने पर वहाँ की जनता, सरकार से भारी विरोध जताती है,यहाँ तो लगभग ढाई हजार अमेरिकी सैनिकों के मरने की बात है,उस स्थिति में जनता द्वारा किए गए भारी विरोध का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
इसलिए अमेरिका अब ‘किसी भी तरह से ‘अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला लेने के लिए छटपटा रहा है,परन्तु यह कितनी विडम्बना की बात है कि यही अमेरिका कभी सोवियत संघ के जमाने में ‘इन तालिबानी आतंकवादियों ‘ को सोवियत संघ के ख़िलाफ़ लामबंद करने के लिए,उन्हें हर तरह की सुविधाएं ,मसलन,खाना,रहना,प्रशिक्षण,अत्याधुनिक हथियारों आदि से सुसज्जित करके उनके एक मजबूत संगठन को खड़ा किया था, अफगानिस्तान से तत्कालीन सोवियत यूनियन की फौजों के लौटने के बाद धीरे-धीरे यही तालिबानी आतंकवादी पूरे अफगानिस्तान राष्ट्र राज्य के समानांतर अपनी सत्ता कायम करके, उसका एक बहुत बड़ा भूभाग पर अपना कब्जा जमा लिए
जब 11 सितम्बर 2001 को अमेरिकी वर्ल्ड सेंटर के ट्विन टॉवर को ध्वस्त किया गया, तो अमेरिकी शक की सुई अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन के अलावे इन तालिबानी आतंकवादियों पर भी गई,उसके बाद अमेरिकी सेना आनन-फानन में अफगानिस्तान में डेरा डालकर इन आतंकवादियों को नेस्तनाबूद करने में जुटी हुई है। इस अफगानिस्तान की मुसीबत से निकलने के लिए अभी पिछले दिनों 29-2-2020 को अमेरिका ने तालिबानी आतंकवादियों से कतर की राजधानी दोहा में एक समझौता कर लिया कि ‘अमेरिका अफगानिस्तान में अपने 14000 सैनिकों की संख्या सिर्फ 135 दिनों में घटाकर 8600 कर देगा,बाकी सैनिक भी उसके सहयोगी देश 14 माह में वापस अपने-अपने देशों में बुला लेंगे, तालिबानी आतंकवादियों के प्रतिनिधि से यह भी तय हुई कि अमेरिकी सैनिकों के जाने के बाद तालिबानी अफगानिस्तान की सेना के विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं करेंगे। ‘
अभी यह समझौता हुए चार दिन भी नहीं बीता था कि तालिबानी आतंकवादियों ने ताबड़तोड़ अनेकों हमले करके अभी किए समझौते के विरूद्ध ‘अफगानिस्तान नेशनल डिफेंस एंड सिक्योरिटी ‘ के 20 सैनिकों को निर्ममतापूर्वक मौत के घाट उतार दिए,चूँकि अमेरिका अफगानिस्तान सरकार की रक्षा के प्रति वचनबद्ध है,इसलिए इसके जबाब में उसने भी तालिबानी ठिकानों पर तुरन्त जबाबी हवाई हमले करके,समाचार पत्रों की सूचना के अनुसार 40 लोगों को मार दिया, जिसमें 17 तालिबानी आतंकवादी बताए जा रहे हैं।
इसमें एक पेच यह भी फँसा है कि तालिबानी प्रवक्ताओं के अनुसार समझौते में यह भी एक बात थी कि उसके अफगानिस्तान की जेलों में बंद 5000 लड़ाकों को 10 मार्च तक छोड़ना था,परन्तु अफगानिस्तान सरकार फिलहाल इससे मुकर गई है,इसके अतिरिक्त उनके अनुसार समझौते में केवल विदेशी फौजों पर हमला निषेध है।
सब मिलाकर अमेरिका का अफगानिस्तान से लौटने की मंशा पूरी होती नहीं दिख रही। जहाँ तक भारत पर इस समझौते के असर की बात है,अमेरिकी फौजों का अफगानिस्तान में रहना हर लिहाज से फायदेमंद है,क्योंकि अफगानिस्तान में तालिबानियों की सत्ता कायम होने पर वहाँ चल रहे बहुत से भारतीय प्रोजेक्ट्स ख़तरे में पड़ जाएंगे, दूसरा भारत को सबसे बड़ा ख़तरा इस बात का होगा कि अफगानिस्तान से तालिबानी आतंकवादियों को छुट्टी मिलने पर,पाकिस्तानी हुक्मरान उन्हें भारत के पश्चिमी सीमा पर खूनखराबा और आतंकी गतिविधियों के लिए खुलकर करने प्रारंभ कर देगें। सब मिलाकर अमेरिका ‘रेशम के कीड़े ‘ जैसे अपने बनाए जाल में ख़ुद फँस गया है।

— निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

"गौरैया संरक्षण" ,"पर्यावरण संरक्षण ", "गरीब बच्चों के स्कू्ल में निःशुल्क शिक्षण" ,"वृक्षारोपण" ,"छत पर बागवानी", " समाचार पत्रों एवंम् पत्रिकाओं में ,स्वतंत्र लेखन" , "पर्यावरण पर नाट्य लेखन,निर्देशन एवम् उनका मंचन " जी-181-ए , एच.आई.जी.फ्लैट्स, डबल स्टोरी , सेक्टर-11, प्रताप विहार , गाजियाबाद , (उ0 प्र0) पिन नं 201009 मोबाईल नम्बर 9910629632 ई मेल [email protected]