घने अंधेरे छायेंगे
घने अंधेरे छायेंगे,
विपत्ति भी डेरे लगायेंगे |
देख प्रतिकूल हालातों को,
शूल स्वयं बिछ जायेंगे ||
हर अवरोध को मेट सदा ही
पथ पर आगे बढना होगा !
दु:ख में धीरज धरना होगा !!
गमों की बारात सजेगी,
सुखन धार विपरीत बहेगी |
आशाओं की दीवार गिरानें,
चहुंओर से बयार चलेगी ||
मुश्किल के हर काल चक्र में
सुख का अभिनय करना होगा !
दु:ख में धीरज धरना होगा !!
असंतोष का ज्वार उठेगा,
ले रौद्ररूप अपयोग चलेगा |
जिंदगी में इस समर क्षेत्र के,
हर पडाव तूफान मिलेगा ||
जीवन की हर उथल- पुथल को
स्वयं व्यवस्थित करना होगा !
दु:ख में धीरज धरना होगा !!
— कंचन कृतिका