शक्ति को न ललकारो
शीतल जल ही रहने दो ।
वात्सल्य अमृत की धारा
ममता कल कल बहने दो ।।
रूप अनेक है शक्ति के
तुम शक्ति न अपनी दिखलाना ।
मात सदा खाई उसने है
जॉन नारी को पहचाना।।
जननी को अपमानित कर
कभी न कोई जीत सका ।
भुजबल धनबल के बल पर
पा नहीं कोई प्रीत सका ।।
सोने की लंका जली सहज
दुर्दशा हुई दुर्योधन की ।
काल घेरते दिखा कंस को
सुन ललकार देवकी की।।
मर्यादा मान सदा प्यारा
त्याग,तपस्या की मूरत है।
जीत सको तो मन जीतो
हर रिश्ते में खूबसूरत है ।।
— रागिनी स्वर्णकार (शर्मा)