इन अंधेरों का दर्द उजालों में छुपा है।
मेहनत का सब मजा छालों में छुपा है।
बच बच के चलियेगा इस बस्ती में,
यहां भेडिया इन्सानी खालों में छुपा है।
गर समझ सको तो समझ जाओ यारों,
मेरा जवाब मेरे सवालों में छुपा है।
एक दिन झोपडे में गुजार कर देखो,
मुफलिसी का राज कहां तालों में छुपा है।
सब चेहरे एक हुए होली के बहाने,
प्यार का राज रंग गुलालों में छुपा है।
— ओमप्रकाश बिन्जवे “राजसागर”