गीतिका/ग़ज़ल

और भी हैं

यूँ तो दिल दुखाने के बहाने होते हैं बहुत
कई बेमिसाल सबब तो खुश रहने के भी हैं
ज़िन्दगी भर बहते हैं दर्द की दरिया में हम
सुकून के कुछ किनारे इस सफर में भी हैं
जो पल हैं आज,उसे तुम जीलो जी भर के,
कल फिर से जीने के बहाने तो और भी हैं
क्यूँ कल की आशा में काट रहे आज हम?
देखो तो,तुम्हारे नीचे आसमान आज भी है
उम्मीदें अक्सर टूट जाती हैं दिल लगाने से
टूटे दिल को बहलाने के बहाने और भी हैं
झूठी मुस्कान चेहरे पे क्यूँ चढ़ा कर रखी है?
खुल कर हंसने के लिए कुछ यादें और भी हैं
— आशीष शर्मा “अमृत”

आशीष शर्मा 'अमृत'

जयपुर, राजस्थान