जीवन साथी
संध्या जो आए मन घबराए
जीवन साथी तुम बिन हाए
लागे न तुम बिन सांझ सुहानी
झुकती घटाएं रुत मस्तानी
मन की जलन को और बढ़ाए
जीवन साथी तुम बिन हाए
बीत गए जाने कितने पल
आंखों से बरसे बनके जल
फिर भी प्यास बुझा ना पाए
जीवन साथी तुम बिन हाए
रात कभी जो महक उठती है
स्वप्न सुहाने हो जाते है
मन सागर सा लहरा जाए
जीवन साथी तुम बिन हाए
चांद अधूरा रात अधूरी
मन की है हर बात अधूरी
यूं ही रुत आए रुत जाए
जीवन साथी तुम बिन हाए
— पुष्पा ” स्वाती “