काली बिंदी
”खबरदार, जो किसी ने मेरी मां की चूड़ियों और मांग के सिंदूर को हाथ भी लगाया!” हाथ उठाकर मना करती हुई गमगीन मां का इशारा समझकर दिनेश ने ललकारते हुए कहा.
इधर पिता का पार्थिव शरीर, उधर मां को घेरे पड़ोस की बुजुर्ग महिलाएं.काली बिंदी
”पर यह तो पुरानी रीत है काके, तू जिद्द क्यों कर रहा है?’ एक बुजुर्ग महिला कहने से अपने को न रोक सकी.
”70 साल तक पिताजी ने मां का साथ निभाया, हंसते-बोलते गए हैं, मां के बेटे पोते-पड़पोते सब हैं, रीत को बदला भी तो जा सकता है!” बुजुर्ग महिलाएं.पीछे हटने को विवश थीं.
”और बिंदी?” एक और महिला बोली.
”बिंदी के बिना मेरी दादी मां नहीं रह सकतीं, आप जानते हैं न बिंदी क्यों लगाई जाती है?” पोती ने घुड़का.
”हम तो इतनी ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हैं, तू ही बता लाली!” एक और महिला ने सुर उठाया.
”मेरी दादी मां बहुत बड़ी लेखिका हैं. योग विज्ञान के आधार पर बिंदी का संबंध हमारे मन से जुड़ा हुआ है. जहां बिंदी लगाई जाती है वहीं हमारा आज्ञा चक्र स्थित होता है. यह चक्र हमारे मन को संगृहीत करता है. … मन को एकाग्र करने के लिए इसी चक्र पर दबाव दिया जाता है और यहीं पर स्त्रियां बिंदी लगाती हैं. आप अभी सब कुछ रहने दीजिए, बाकी सब वैसे ही रहेगा, हम दादी मां के काली बिंदियां ले आएंगे. आपका मान भी रह जाएगा.” पोती ने सुर को विस्तार दिया.
दादी मां की काली बिंदी की श्यामलता ने उन्हें इस उम्र में भी बच्चों के स्नेह और अपनी ताजा रचनाओं से माहौल को होली के रंगों की तरह रंगीन बनाए रखने में सहायता की थी.
मन को एकाग्र करने के लिए आज्ञा चक्र पर दबाव दिया जाता है और यहीं पर स्त्रियां बिंदी लगाती हैं. इससे मन की एकाग्रता बनी रहती है. रूढ़ियों पर प्रहार करते हुए बच्चे और आज की पीढ़ी गमगीन माहौल को भी रंगीन बना देने में सक्षम होते हैं. सबको होली की हार्दिक शुभकामनाएं.