होली है !
आलोक राम सेवानिवृत्त विधुर हैं। कोई संतान नहीं। इसके बावजूद हमेशा हंसते – मुस्कुराते जिंदादिली से ज़िंदगी जीते हैं। सुबह होली खेलने के लिए घर से सफेद कुर्ता, पायजामा पहनकर निकले। गली में देखा, कोई बच्चा नहीं दिख रहा था, जिसके साथ होली खेल सकें। चल पड़े अपने छोटे भाई के घर की ओर, उनकी पोतियों संग रंग खेलने के लिए।
रास्ते में कुछ बच्चे शोर मचाते, एक दूसरे को रंगों से सराबोर कर रहे थे। सफेद कपड़ों में आलोक राम को देखकर ठिठक गए। उन्होंने रंग खेलना बंद किया। आलोक राम ने अचंभित होकर उनसे पूछा, “ रुक क्यों गए? “ “ कुछ देर पहले रंग खेलते समय, अनजाने में एक अंकल को रंग लग गया। चीखने – चिल्लाने और गंदी – गंदी गालियाँ देने लगे। आपके तो सफेद कपड़े हैं। अगर रंग लग गया तो ? “ एक बच्चे ने बड़े भोलेपन से जवाब दिया।
“ मुझे रंग मारो। मैं नाराज़ नहीं हूंगा। “ आलोक राम ने बच्चों को उत्साहित करते कहा। लेकिन बच्चे स्तब्ध खड़े थे। उनकी हिम्मत नहीं हो रही थी उन पर रंग डालने की। आलोक राम ने एक बच्चे की पिचकारी छीनी। सभी बच्चों पर थोड़ा – थोड़ा रंग डाला। अब बच्चों को जोश आया। पूरी ताकत लगाकर आलोक राम को रंग डाला। आस पास से गुजरने वाले लोग आश्चर्य से छोटे बच्चों और `बड़े बच्चे´ की होली देखकर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ने लगे।
– – अशोक वाधवाणी