गीतिका/ग़ज़ल

कनहल के फूल

फूलों के मौसम में फिर फिर, आ जाते कनहल के फूल।
रंग-रंग में नई उमंगें, भर लाते कनहल के फूल।

धूप-पसीने से लथपथ हो, जब जीवन बोझिल होता
शीत-छाँव बन सुरभि स्नेह की, फैलाते कनहल के फूल।

इन फूलों से शोभित होती, घर घर पूजा की थाली
प्रभु चरणों की शोभा बनकर, इतराते कनहल के फूल।

नन्हें हाथ पकड़ डाली जब, इनको हसरत से छूते
बाहों भरकर उन हाथों को, सहलाते कनहल के फूल।

रातों की मृदु लोरी बनते, प्रातः की पुलकित पुरवा
बन बहार तपती दुपहर को, महकाते कनहल के फूल।

धन्य समझता माली खुद को, सींच पेड़ निज हाथों से
हर्षित होता जब गुच्छों में लहराते कनहल के फूल।

पन्नों पर ये शब्द-चित्र बन, भाव भरे नगमें गाते
भीगे-भीगे हर कवि मन को, हुलसाते कनहल के फूल।

फूल नहीं ये देवदूत हैं, प्राणवायु मिलती इनसे
हर प्राणी को सौख्य सौंप दुख, अपनाते कनहल के फूल।

मानवता के इन मित्रों ने, लंबी उम्र नहीं पाई
मगर “कल्पना” सदा मनस में, बस जाते कनहल के फूल।

-कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]