और गीत बन गया
उनके लिए हिंदी में गीत-कविता लिखना बहुत मुश्किल है, क्योंकि वे पहले पंजाब में पंजाबी माध्यम से पढ़े हैं, बाद में इंग्लैंड में अंग्रेजी माध्यम से पढ़कर रोजी-रोटी कमाई है. शालिनी को इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता.
”आप थोड़ी देर के लिए बच्चा बन जाइए और हमारे ब्लॉग के लिए एक छोटा-सा बाल गीत लिखकर भेजिए. छोटे-से बच्चे को वफादार सैनिक बनाइए या ऐसा ही कुछ लिखिए.” प्रोत्साहन देकर कुछ करवाने का शिक्षिका रह चुकी शालिनी का यह अपना तरीका था. मेल पर यह संदेश लिखकर वह ”ऑस्ट्रेलिया से गुड नाइट’ करके सो गई.
सुबह उठकर उसने मेल देखी
”गुड बाई, चंदा मामा!
चंदा मामा दूर के, पूए पकाएं बूर के,
राग पुराना हो चुका अब, तुझे पहचाना दूर से.
सतह तुम्हारी ऊबड़-खाबड़, अब हम सब जान गए,
हम हरियाली में रहते हैं, तुम पत्थर, पहचान गए.
देख तुझे हम समझ गए हैं, नहीं आप जैसा बनना है,
वृक्ष लगाएंगे धड़ाधड़, फिर आप को हम से जलना है.
बर्बाद नहीं करना पानी को, शिक्षा आप से सीखी है,
बहुत मुश्किल से ये आठ लाइनें लिखी हैं.
गुरमेल भमरा”
”गुरमेल भाई, यह तो बहुत बढ़िया गीत बन गया, शुक्रिया.” शालिनी ने लिखा.
”77 साल के बाल-युवा-बुजुर्ग गुरमेल भाई चलने-बोलने से भले ही बेबस हों, लेकिन विचारों से, मानसिक रूप से कतई बेबस नहीं हैं.” शालिनी ने सोचा और बाल गीत का ब्लॉग बनाने में व्यस्त हो गई.
पुनश्च-
हमारे ब्लॉग ‘रसलीला’ पर गुरमैल भाई को छह साल पूरे होने की, सातवां साल शुरु होने की हार्दिक बधाइयां व शुभकामनाएं.
इस लघुकथा ने ‘नया लेखन – नया दस्तखत पर और सार्थक साहित्य मंच पर बहुत धूम मचाई है.
77 साल के युवा गुरमैल भाई जी, आपके साहस, मेहनत, लगन, धैर्य से हम लोग थोड़ा कुछ भी सीख सकें, तो हमारा जीवन धन्य हो जाएगा. इस उम्र में भी आप कुछ-न-कुछ नया सीखने और करने के लिए प्रस्तुत रहते हैं, आप आज के जेम्स बांड हैं. जेम्स बांड तो ज़ीरो सेवेन थे, आप डबल सेवेन हैं.