अवशेष
जब भी हर्फ़ों को कागज पर उतारना चाहा ,
तुम और तुम्हारे जज्बात आँखों में उतर आये /
कलम दौड़ती रही दीवारों पर चित्रभीति जैसे,
ख्यालों में जाने क्यूँ तुम गमगीन नजर आये /
अवशेष ही तो है धुंधली यादों के चहकते पन्ने ,
जैसे बादलों से चमकती बिजली नजर आ जाए/
डोर प्यार की टूटना नामुमकिन है इस जन्म में ,
मिलन की इच्छा बरबस जाने क्यों बहका जाए /
तपती दुपहरी में वो तेरा मुझसे यूँ इठलाना।,
अगले कई जन्मों तक साथ रहने का सपना सुहाना /
शरमाकर वो मेरा आँचल से मुँह को ढक लेना ,
इतराकर तेरा सहसा वो दर्द भरा गीत गाना /
याद करके तेरी बेवफाई आज भी रुला जाए ,
क्या तुझे भी हम यूँ ही कभी याद आये /
वो प्यार था या था सिर्फ शर्त को जीत जाना ,
दिल को मेरे जाने क्यों आज भी गम सताये /
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़