जख्म
भर जाते होंगे वक़्त के साथ यादों के गहरे जख्म भी ,
भुला देता होगा आसमान भी बूंदों की बेबफाई को तल्खियों के बाद ।
चला जाता होगा पतझड़ का मौसम भी एक समय के बाद ,
भर आता होगा ह्रदय भी समुद्र का नदी से बिछुड़ने के बाद ।
जख्मों का क्या लेना देना वक़्त की रहगुजारियों के साथ ,
चले आते हैं सरपट नहीं देखते उम्र की सीमा रेखा का तनाव ।
छलक जाता है पैमाना भी सब्र का एक उम्र के बाद
जाने किस दुनिया के होते हैं वो हसीन खूबसूरत अल्फाज ।
आँसूओं की नापाक कोशिशें भी पाक हो जाती हैं
जिस्म के बदलते हुए खूबसूरत अंदाज की सफेदपोशी के बाद ।
फना हो जाते हैं अक्सर साहिल लहरों की कशमकश में ,
डोर दिलों की खींचते हुए हमउम्र की तलाश के बाद।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़